बीकानेर। सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर की तरफ से डॉ.एल.पी तैस्सितोरी की पुण्यतिथि के अवसर पर आज दूसरे दिन राजकीय संग्रहालय स्थित तैस्सितोरी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि/श्रद्धांजलि/विचारांजलि का आयोजन किया गया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
संस्था सचिव डॉ.मुरारी शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- डॉ.तैस्सितोरी ने भारत की अभिजात्य कला, भाषा शास्त्र, पुरातत्व तथा जैन विध्या के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किए। अल्पायु में ही अपने देश से हजारों मीलों की दूरी पर बसे राजस्थान, विशेषत: बीकानेर में आकर उन्होंने प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी भाषा के एतिहासिक व्याकरण पर विद्वतापूर्ण शोध कार्य किया जो अनुकरणीय है।
सखा संगम के अध्यक्ष एन.डी.रंगा ने कहा डॉ.एल.पी.तैस्सितोरी एक महान विद्वान एवं भाषाविद तो थे ही, भारतीय कला, संस्कृति एवं पुरातत्व के क्षेत्र में भी उनका सराहनीय योगदान रहा। समाजसेवी चन्द्रशेखर जोशी ने कहा कि विश्व के इतिहास में ऐसा दृष्टांत दुर्लभ है जिसमें कोई विदेशी विद्वान अपने देश को छोडकर दूसरे देश में जाकर पूर्ण श्रद्धा एवं लगन से काम करें। कवि-कथाकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा आज डॉ.तैस्सितोरी सशरीर हमारे मध्य नहीं है परंतु उनके द्वारा किए गए महान कार्यों ने उन्हें अमर बना दिया । उनके पास एक सैनिक का सा हृदय था तो कलाकार के हाथ, वैज्ञानिक का मष्तिष्क, कवि की स्वप्नदर्शी आंखें और यायावर के गतिशील चरण थे।
मंच संचालक अशफाक कादरी ने कहा कि ज्ञान की अक्ष्क्षुण पिपासा रखने वाले अति महत्वाकांक्षी विद्वान डॉ.तैस्सितोरी ने राजस्थान की महान संस्कृति के धूमिल तथा छिपे वैभव को विश्व के सामने रखा। संस्कृतिकर्मी राजेन्द्र जोशी ने कहा कि डॉ.तैस्सितोरी के किए कार्यों से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। कार्यक्रम में कवयित्री मोनिका गोड, जन्मेजय व्यास, शिक्षाविद भगवानदास पडिहार, एडवोकेट हीरालाल हर्ष आदि गणमान्यजनों ने भी अपने विचार रखे।
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