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तैस्सितोरी के राजस्थानी भाषा में दिए गए योगदान को याद किया

Missed the contribution given to Rajasthani in Rajasthani language - Bikaner News in Hindi

बीकानेर। सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर के तत्वावधान में राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति के शोध अध्येयता, इटली निवासी डॉ.एल.पी तैस्सितोरी की पुण्यतिथि के अवसर पर दो दिवसीय कार्यक्रम के तहत मंगलवार को “राजस्थानी भाषा: तैस्सितोरी का योगदान” विषय़ पर संवाद आयोजित किया गया ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार भवानीशंकर व्यास “विनोद” ने कहा कि राजस्थनी भाषा के लिए तैस्सितोरी का योगदान उल्लेखनीय है । व्यास ने कहा कि चार वर्ष तक भारत मे रहकर डॉ. तैस्सितोरी नें राजस्थान का चारण साहित्य एवं उसकी एतिहासिक खोज करने हेतु विवरिणिकाएं प्रकाशित करवाई । उन्होंने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी का प्राकृत भाषा व राजस्थानी ग्रंथों के साथ-साथ जैन साहित्य के प्रति भी बहुत रुझान था ।

मुख्य वक्ता संस्कृतिकर्मी, कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा तैस्सितोरी 24 अप्रेल 1914 को इटली से रवाना हुए और 8 अप्रेल को भारत आए । चार वर्ष तक राजस्थान सहित भारत के विभिन्न प्रांतों में तहकर भारतीय भाषाओं के लिए काम किया एवं कम उम्र में बीकानेर में राजस्थानी का काम करते हुए देहावसान हो गया । जोशी ने कहा कि तैस्सितोरी को अंग्रेजी, ग्रीक, लेटिन के साथ संस्कृत व प्राकृत भाषा का ज्ञान था । उन्होंने पुरानी व नई गुजराती, अपभ्रंस, मारवाडी, डिंगल, ब्रज, उर्दू आदि अनेक भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया । जोशी ने कहा कि राजस्थानी भाषा को समृद्ध करते हुए अनेक राजस्थानी ग्रंथों का प्रकाशन भी करवाया ।
कार्यक्रम में बोलते हुए बसंती हर्ष ने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी का लक्ष्य राजस्थानी के अलभ्य और अमूल्यग्रंथों की खोज और सर्वेक्षण का था । उन्होंने जोधपुर और बीकानेर के पुस्तकालयों को आधार मानते हुए अपना काम किया ।

रोजगार मार्गदर्शक डॉ.अजय जोशी ने कहा कि पल्लू गांव की सरस्वती प्रतिमा को तलाशने का श्रेय डॉ. तैस्सितोरी को ही जाता है । यह प्रतिमा बीकानेर के संग्रहालय में आज भी सुरक्षित है । उन्होंने राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए सरकार से आग्रह किया। विशिष्ठ अतिथि संग्रहालय के अधीक्षक निरंजन पुरोहित ने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी एक महान कर्मयोगी एवं भाषा वैज्ञानिक थे ।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में संयोजक राजाराम स्वर्णकार ने स्वागत उद्बोधन देते हुए बताया कि सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट के माध्यम से इस विषय पर पूर्व में बहुत अधिक एवं गम्भीर काम हुआ है जिसे और आगे बढाने की कार्य योजना तैयार की जा रही है । कार्यक्रम में नरसिंह भाटी “नीशू” ने तैस्सितोरी के किए कार्यों को काव्यमयी प्रस्तुत किया । कार्यक्रम में डॉ.शंकरलाल स्वामी, बुलाकी शर्मा, एन.डी.रंगा, चन्द्रशेखर जोशी, ब्रजगोपाल जोशी, मोहन थानवी, योगेन्द्र पुरोहित, हरीश बी.शर्मा, मो.फारुक, डॉ.एस.एन.हर्ष, एस.पी.पुरोहित, रामलाल पडिहार, भगवानदास पडिहार, गौरीशंकर प्रजापत, मोहन वैष्णव, जन्मेजय व्यास, जगदीश अमन सहित अनेक साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी उपस्थित थे । अंत में संस्था की तरफ से संगीतज्ञ डॉ. मुरारी शर्मा ने आभार प्रकट किया । संचालन संजय आचार्य ‘वरुण” ने किया ।



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