भरतपुर। भरतपुर की विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से दुर्लभ प्रवासी पक्षियों का पलायन जारी है। इस कारण इस सीजन में यहां देसी-विदेशी पर्यटकों की संख्या पर असर पड़ता नजर आ रहा है। गौरतलब है कि पूर्वी राजस्थान में मानसून की बेरुखी के कारण यह विश्व धरोहर सूखे की मार झेल रही है और देश-दुनिया के सुदूर देशों से हजारों मील का सफर तय कर इस राष्ट्रीय उद्यान में पहुंचने वाले परिंदे यहां से पलायन कर अब अन्य जगह जा रहे हैं। केवलादेव उद्यान प्रशासन भी इस मामले में हाथ खड़े कर जिले में बरसात नहीं होने से सूखा होने तथा यहां आने वाले पानी के भी रुक जाने की बात कह कर पल्ला झाड़ रहा है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
गौरतलब है कि मानसून की बेरुखी के बाद राष्ट्रीय उद्यान को समय पर पानी उपलब्ध कराने की सरकार की कार्य योजना के तहत 17 अक्टूबर को वन मंत्री गजेंद्र खींवसर से मुलाकात के बाद उद्यायन प्रशासन को चम्बल पेयजल परियोजना से उद्यान के लिए 150 एमसीएफटी पानी छोड़ने का प्रावधान हुआ था, लेकिन दुर्लभ पक्षियों के पलायन के बाद भी पानी उद्यान में नहीं पहुंचा। नतीजतन यहां आए प्रवासी पक्षी पेंटेड स्टोर्क अब अन्य जगहों पर कूच कर चुके हैं।
अब यह माना जा रहा है कि इसका प्रभाव विदेशी पर्यटकों और पक्षी प्रेमियों की यहां आने वाली संख्या पर भी पड़ेगा। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को 550 एमसीएफटी पानी की जरूरत होती है, जिससे यहां स्थित झीलों के आठ ब्लॉक पानी से भर जाते हैं, लेकिन इस बार उद्यान की झीलें सूखी हैं। केवलादेव उद्यान के निदेशक अजीत उचोई भी उद्यान की इस स्थिति के लिए सूखा और अन्य जगहों से यहां आने वाले पानी के रूक जाने को दोषी मानते हैं। वैसे 10 मार्च 1982 को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा तथा 1985 में विश्व विरासत की सूची में शामिल होने वाले इस उद्यान को 2008 में पानी की किल्लत के चलते यूनेस्को की तरफ से डेंजर जोन की सूची में डाला जा चुका है।
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