कपूरथला। लोकसभा चुनाव से पूर्व निजीकरण व एफडीआई का विरोध करने वाली मोदी सरकार अब खुद यूपीए सरकार की राह पर चल पड़ी है। केंद्र सरकार के इशारे पर रेलवे बोर्ड ने अब एशिया के सबसे बड़े रेल डिब्बा कारखाने को निजीकरण की तरफ धकेलने की ओर कदम बढ़ाए दिए हैं। इस उद्देश्य से सबसे पहले आउटसोर्सिग को जरिया बनाया गया है, जिसके तहत करोड़ों रुपए की विदेशी मशीनरी को प्रयोग में लाने की बजाए उसे कबाड़ बना कर निजी फार्मो को लाभ पहुंचाया जाने लगा हैं। रेल डिब्बा कारखाना में लगभग पांच साल पहले फ्रांस से एलएचबी कोचों में लगने वाली सीट की कटिंग व बैंडिग के लिए 12 करोड़ 35 लाख 70 हजार की सीटीएल मशीन मंगवाई गई थी। एलएचबी कोचों की बेसिक प्रक्रिया में शामिल इस मशीन से सीट की कटिंग व बैडिग के साथ-साथ रफनेस सेट की जाती है लेकिन अभी तक यह मशीन अंडर ट्रायल ही है जिसे एक दिन के लिए भी प्रोडक्शन यूनिट के हैंडओवर नही किया गया है। इस मशीन से रेडिका अधिकारी पांच सालों से ट्रायल की प्रक्रिया से ही बाहर नहीं निकले हैं। इसी तरह लेजर कटिग व वेल्डिंग के इस्तेमाल में आने वाली एलसीडब्ल्यू मशीन को छह दिसंबर 2008 को बेल्जियम से मंगवाया गया था। लगभग 12 करोड़ रुपए की कीमत वाली यह मशीन पिछले 9 सालों में सिर्फ चार साल तक ही मुश्किल से चली है। इस मशीन से एलएचबी कोचों की साइड वाल शीट की वेल्डिंग व कटिग का काम लिया जाता है। कोरिया की एचके लेजर मशीन को भी कंडम बनाया जा रहा है। आरसीएफ के निजीकरण और डिब्बा निर्माण के काम में आउटसोर्सिग को बढ़ावा देने की दिशा में बढ़ते हुए रेलवे बोर्ड ने आरसीएफ में नई भर्ती पर रोक लगा दी है और कोच निर्माण के लक्ष्य को बढ़ा कर लगभग दोगुना किया जा रहा है। इतना ही नही आरसीएफ कर्मचारियों को काम के बदले मिलने वाले इंसेंटिव को भी सीमित कर दिया गया। ऐसी परिस्थितियों में रेडिका कमर्चारी काम नहीं कर पाएंगे और रेडिका प्रशासन को अपने लक्ष्य की पूर्ती के लिए निजी फार्मो व सप्लायरों पर निर्भर होना पड़ेगा तथा आगे चल कर यह कदम आरसीएफ के निजीकरण की राह खोलेगा। इस बारे में आरसीएफ की इंप्लाइज यूनियन के महासचिव सबरजीत सिह का कहना है कि मोदी सरकार व रेलवे बोर्ड ने नई भर्ती से पूरी तरह इंकार कर दिया है। आरसीएफ में मात्र 6748 कर्मचारी रह गए जबकि कोचों का साल 2017-18 के लिए लक्ष्य 1626 से बढ़ा कर 3288 कोच कर दिया गया है। इंसेंटिव को सीमत कर आरसीएफ को निजी हाथों में सौपने और आउटसोर्सिग को बढ़ावा देकर रेडिका कर्मियों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है।
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