नई दिल्ली। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को राज्यसभा का टिकट मिलते-मिलते रह गया। सबसे प्रबल दावेदार होने के बावजूद रघुवर दास के राज्यसभा जाने की राह में ऐन वक्त पर क्यों अड़ंगा लगा? आईएएनएस ने पार्टी से जुड़े कुछ नेताओं और सूत्रों से बातचीत की तो इसके पीछे चार प्रमुख वजहें सामने आई हैं। दरअसल, बुधवार को जारी हुई सूची में झारखंड से रघुवर दास का नाम गायब देखकर यह चर्चा चल निकली कि कल तक दूसरों को टिकट दिलाने और काटने वाले रघुवर दास आज अपने ही टिकट के लिए मोहताज हो गए? ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
झारखंड के भाजपा सूत्रों ने बताया कि रघुवर दास के टिकट कटने का पहला कारण है- सूबे में भाजपा की सियासत में फिर से बाबूलाल मरांडी का दौर शुरू होना। बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के तीन बड़े फैसलों से बाबूलाल मरांडी को पार्टी में फिर वही हैसियत हासिल हो गई है, जो कभी मुख्यमंत्री बनने के दौरान और उससे पहले थी। भाजपा में नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद बाबूलाल मरांडी ने सबसे पहले अपने करीबी दीपक प्रकाश को प्रदेश अध्यक्ष बनवाया और अब फिर उन्हें राज्यसभा का टिकट भी दिलाने में सफल रहे।
इस प्रकार भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने राज्य इकाई को संदेश दिया है कि पार्टी में राज्य स्तर पर फैसले बाबूलाल मरांडी की ही सहमति से होंगे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि रघुवर दास को अगर राज्यसभा का टिकट मिलता तो माना जाता कि पार्टी नेतृत्व मरांडी और रघुवर को समानांतर तवज्जो दे रहा है। राज्य में गैर आदिवासी कार्ड फेल होने के बाद भाजपा अब आदिवासियों के सहारे राजनीति को आगे बढ़ाना चाहती है इसलिए रणनीति के तहत बाबूलाल मरांडी के फैसलों पर मुहर लगाई जा रही।
दूसरा कारण पार्टी के विधायकों की रघुवर से नाराजगी है। सूत्रों का कहना कि करीब एक दर्जन विधायकों ने रघुवर दास की जगह किसी दूसरे चेहरे को राज्यसभा भेजने की मांग उठाई थी। जिससे पार्टी को लगा कि रघुवर को टिकट देने पर क्रॉस वोटिंग हो सकती है। ये वे विधायक थे जिन्हें रघुवर सरकार में अपेक्षित तवज्जो नहीं मिलती थी।
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