श्रीनगर/नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में दो साल पहले गठबंधन सरकार बनानी वाली भाजपा और पीडीपी अब विलगाव की ओर बढ़ रही है। ऐसे में क्या हिंसा से सुलगता जम्मू-कश्मीर राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रहा है, सत्ता के गलियारों में अब यह सवाल उठ रहा है। राज्य मं भाजपा-पीडीपी गठबंधन के बीच बढ़ती दरार ऐसे कयासों को और हवा दे रही है। राज्य में भीड़ की हिंसा, बढ़ते आतंकवाद और हाल में हुए श्रीनगर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कम वोटिंग को लेकर दोनों ही पार्टियों के नेता इन दिनों सार्वजनिक व निजी, दोनों ही रूप से एक-दूसरे के खिलाफ बयान दे रहे हैं। घाटी में पत्थरबाजों और हिंसक भीड़ से निपटने का तरीका दोनों ही ओर से हो रही बयानबाजी का केंद्र है।
पीडीपी कहती है कि घाटी के हालात पर भाजपा की राजनीति ‘टकराव को बढ़ाने वाली’ है, जबकि भाजपा का कहना है कि पीडीपी ‘तुष्टीकरण’ की राजनीति कर रही है। भाजपा मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से लगातार कहती रही है कि वह पत्थरबाजों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें और नेशनल कॉन्फ्रेंस की राजनीति के दबाव में ना आएं। वहीं कश्मीर को लेकर पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि इस उलझन की वजह से सुरक्षा तंत्र तबाह हो रहा है। एक सीनियर अधिकारी ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर बताया, ‘जब हम पत्थरबाजों को गिरफ्तार करते हैं तो हमें उन्हें छोडऩे के लिए राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उनमें से कई पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस से होते हैं। दोनों ही पार्टियां कानून-व्यवस्था को कमजोर करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करती हैं।’
महबूबा सरकार की उलटी गिनती?
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