करनाल।
राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान में पिछले पांच दिन से दूध तथा दूध से
बनने वाले पदार्थो के माइक्रोबायोलोजी एवं रसायनिक जांच के तरीके विषय पर
चल रही प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन हो गया। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम केरल
खाद्य सुरक्षा विभाग त्रिवेंद्रम की ओर से प्रायोजित किया गया था। जिसमें
खाद्य सुरक्षा की जांच करने वाले केरल के 10 अधिकारियों ने भाग लिया और
खाद्य सुरक्षा संबंधित मुद्दों पर गहन चर्चा की। संस्थान के निदेशक डा.
आरआरबी सिंह ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
डा.
आरआरबी सिंह ने कहा कि दूध और दूध से बने उत्पाद प्राचीन काल से ही हमारे
आहार का महत्वपूर्ण अंग बने हुए हैं। दूध स्वभाविक रूप से पोष्टिक होता है,
लेकिन दूध और दूध से बने उत्पादों मेंं मिलावट की वजह से डेरी उद्योगों के
साथ साथ उपभोक्ता को आर्थिक व शारीरिक नुकसान हो रहा है। नए-नए मिलावटी
तत्वों के कारण यह समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। डा. सिंह ने कहा कि
उपभोक्ता को सुरक्षित तथा मानको पर आधारित भोजन उपलब्ध करवाना खाद्य
सुरक्षा विभाग की जिम्मेदारी है, जिसके लिए खाद्य सुरक्षा विभाग समय समय पर
उनकी जांच करता रहता है और अपने अधिकारियों को नई नई तकनीकों से अवगत
करवाता है। उन्होंने बताया कि भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण
(एफएसएसएआई) ने हाल ही में दूध के माइक्रोबायोलोजी मानक भी स्थापित किए
हैं। इस कार्यशाला में उन मानको पर भी चर्चा की गई और निश्चित रूप से यह
कार्यशाला लाभकारी साबित होगी।
डेरी
माइक्रोबायोलोजी की अध्यक्ष डा. सुनीता ग्रोवर मान ने बताया कि इस
कार्यशाला का मुख्य उद्ेश्य दूध में पाये जाने वाले रोगजनक जीवाणुओं की
पहचान तथा उनकी गिनती के बारे में जानकारी देना रहा। कार्यशाला में
प्रतिभागियों को खाद्य सुरक्षा के कानूनों के बारे में भी विस्तार पूर्वक
बताया गया। खास तौर पर कैमिकल टेस्टिंग में दूध तथा दुग्ध पदार्थो में फैट,
प्रोटीन, दूध में मिलावट, घी की टेस्टिंग तथा फूड टेस्टिंग लैब की मान्यता
प्राप्त करने हेतु चर्चा की गई।
डा.
नरेश गोयल ने बताया कि एनडीआरआई में राष्ट्रीय दुग्ध गुणवता एवं सुरक्षा
रेफरल केंद्र स्थापित किया गया है, जहां डेरी उद्योग से जुड़े लोग दूध एवं
दुग्ध उत्पादों की जांच करवा सकते हैं। कोर्स समन्वयक डा. रघु ने कार्यशाला
की रिपार्ट प्रस्तुत की तथा डा. राजन शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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