बलवंत तक्षक, चंडीगढ़।
गेंद अब केंद्र सरकार के पाले में है। अब तक सतलुज-यमुना जोड़ (एसवाईएल)
नहर निर्माण के मुद्दे पर केंद्र सरकार की भूमिका तटस्थ रही है। केंद्र ने
कोई ठोस कदम उठाने के बजाये हमेशा ही हरियाणा-पंजाब के मुख्यमंत्रियों को
मिल-बैठ कर इस मुद्दे को सुलझा लेने की सलाह दी है।
नहर निर्माण के
मसले पर उलझे पंजाब-हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की दिल्ली दौड़ को देखते हुए
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा है कि नहर पंजाब या
हरियाणा को नहीं, केंद्र सरकार को बनवानी है। इस दिशा में केंद्र को कदम
उठाने चाहिए। विधानसभा चुनावों के दौरान पंजाब कांग्रेस का दिल्ली में
घोषणा पत्र जारी करने के मौके पर रणदीप सुरजेवाला की उपस्थिति पर इंडियन
नेशनल लोकदल (इनेलो) के वरिष्ठ नेता अभय सिंह चौटाला ने सवाल उठाए थे।
कांग्रेस के घोषणा पत्र में हरियाणा को उसके हिस्से का पानी नहीं देने का
संकल्प जताया गया था। इस मुद्दे पर इनेलो ने सुरजेवाला को हरियाणा के हितों
की अनदेखी पर लपेटे में ले लिया था। अब सुरजेवाला ने कहा है कि नहर
निर्माण का अधूरा कार्य केंद्र सरकार को पूरा करवाना है। मुख्यमंत्री खटटर
अभी तक प्रधानमंत्री से मिलने का समय भी नहीं ले पाए हैं, ऐसे में नहर का
निर्माण कैसे करवाएंगे?
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट नहर निर्माण
के लिए हरियाणा के हक में फैसला दे चुका है। इस फैसले के बाद से पंजाब व
हरियाणा के मुख्यमंत्री लगातार दिल्ली भाग रहे हैं। कभी पंजाब के
मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री से मिल रहे हैं तो कभी हरियाणा के मुख्यमंत्री
केंद्रीय गृह मंत्री का दरवाजा खटखटा रहे हैं। दोनों राज्यों के लोगों के
लिए एसवाईएल एक भावनात्मक मुद्दा है, ऐसे में पंजाब के हितों के लिए लड़ते
दिखने में न मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पीछे रहना चाहते हैं और न
हरियाणा के हितों के लिए लड़ने का बीड़ा उठाते दिखने में मुख्यमंत्री मनोहर
लाल खट्टर अपने विरोधियों से पिछड़ना चाहते हैं।
खट्टर लगातार राज्य
की जनता को भरोसा दिला रहे हैं कि नहर निर्माण पूरा होगा और पानी भी
मिलेगा। उधर, पंजाब के मुख्यमंत्री भले ही प्रकाश सिंह बादल रहे हों और
चाहे अब राज्य की कमान कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास हो, दोनों का एक ही सुर
रहा है कि पानी किसी कीमत पर नहीं देंगे। दोनों राज्यों के बीच पानी देने
और नहीं देने की यह लड़ाई पिछले 51 साल से जारी है।
पानी के इस राग
पर पंजाब व हरियाणा में अब तक कितनी ही सरकारें आर्इं और गर्इं, लेकिन आज
तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है। आगे यह लड़ाई और कितनी लंबी चलेगी, कुछ
कहना संभव नहीं है। राजनीति के खिलाड़ी हकीकत को समझते हैं कि कानूनी दावपेच
की वजह से मामले को वर्षों खींचा जा सकता है। ऐसा हो रहा है और आगे भी ऐसा
हो सकता है।
माना जा सकता है कि पंजाब नहर निर्माण रोकने के लिए
आने वाले समय में विधानसभा में कोई नया बिल पारित कर सकता है और इस कानून
को हरियाणा की तरफ से फिर अदालत में चुनौती दी जाएगी। यानी, तारीख-दर-तारीख
का सिलसिला फिर शुरु होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी से मिल कर मुख्यमंत्री रहते प्रकाश सिंह बादल ने अपने राज्य
का पक्ष रखा था। जाहिर है, उनकी इच्छा नहर का निर्माण कराने की नहीं थी।
पंजाब में सत्ता पलट के बाद मुख्यमंत्री बने कैप्टन अमरिंदर सिंह भी अब
प्रधानमंत्री मोदी से मिल कर यही बात कह आए हैं। इससे पहले बादल और उनके
बेटे सुखबीर बादल इस सिलसिले में राष्टÑपति प्रणब मुखर्जी से मिले थे। इसके
बाद खट्टर भी एक शिष्टमंडल के साथ राष्टÑपति से मिल कर हरियाणा का पक्ष
उनके सामने रख चुके हैं।
कैप्टन के प्रधानमंत्री से मिलने के बाद
खट्टर को भी मोदी से मिलना है, लेकिन अभी उनको मुलाकात का समय नहीं मिला
है, ऐसे में लोगों तक यह संदेश पहुंचाना रूरी था कि हरियाणा सरकार हाथ पर
हाथ धरे नहीं बैठी है। प्रधानमंत्री से मुलाकात हो, न हो, खट्टर केंद्रीय
गृह मंत्री से मिल आए हैं। मांग वही है, जल्द नहर बनवाओ, फौरन पानी दिलवाओ।
इस सब के बीच हरियाणा के लोग एक ही सवाल पूछते हैं, दिल्ली भाग दौड़ तो ठीक
है, लेकिन पानी कब मिलेगा? इसका जवाब अभी किसी के पास नहीं है!
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