भुज (गुजरात)। मौजूदा दौर में जहां कई पारंपरिक शिल्प अपना अस्तित्व बचाने
के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गुजरात के कच्छ में बसा
अज्रखपुर नामक छोटा सा गांव घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों को अपने
प्राकृतिक चटख रंगों से रंगे ब्लॉक ङ्क्षप्रट कपड़ों से लुभा रहा है।
इस
प्रिंट को अज्रख के नाम से जाना जाता है, जिसे बनाने में काफी समय व
परिश्रम लगता है और यह एक लंबी प्रक्रिया है। गांव के सौ से अधिक परिवार इस
शिल्प से जुड़े हुए हैं, जिसके बाद उच्चतम कोटि का कपड़ा तैयार होता है,
और फिर इस पर फैशन की शीर्ष कंपनी का लेबल लगता है।
भुज में 2001
में आए भीषण भूकंप के बाद धमादका गांव से अज्रखपुर में आकर बसे सूफियान
इस्माइल खतरी के मुताबिक, यह गांव बहुत पुराना नहीं है, लेकिन उनका यह
शिल्प 400 वर्षों से अधिक पुराना है। सूफियान अज्रख प्रिंटर की 9वीं पीढ़ी
से हैं। उन्होंने अपने पूर्वजों की उस कला को आज तक संजो कररखा है, जिसे
उनके पूर्वज सिंध से लेकर यहां आए थे।
एक शिल्पकार को डिजाइन सिखाते
हुए सूफियान ने कहा, ‘‘प्राकृतिक रंगों के माध्यम से पारंपरिक अज्रख
प्रिटिंग 16 चरणों की प्रक्रिया है। इसमें 14 से 21 दिनों का समय लगता है।
यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि इसमें कितने रंग होंगे और ब्लॉक प्रिंट
के कितने स्तरों का इस्तेमाल किया जाएगा।’’
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