नई दिल्ली। यह वह वर्ष है, जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रचार और
रणनीतिकार के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध विपक्ष की मजबूत
आवाज बनकर उभरे हैं। उन्होंने इसके साथ ही हिंदी पट्टी की मुश्किल चुनावी
लड़ाई में अपनी राजनीतिक जगह बनाई और अपनी पार्टी को तीन राज्यों में जीतने
में मदद की, जिसका असर कुछ महीने दूर लोकसभा चुनाव में होगा। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
राहुल
गांधी ने इस वर्ष की शुरुआत कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में की। पार्टी के
संगठनात्मक चुनाव के बाद उनकी मां सोनिया गांधी से पिछले वर्ष दिसंबर में
उन्हें यह पद मिला था। यह पथ कर्नाटक को छोडक़र उनके लिए चुनौतियों से भरी
रही, जहां पार्टी सत्तारूढ़ गठबंधन में घटक दल है। बीते चार वर्षों में भी
पार्टी ने भाजपा को सीधे लड़ाई में मात नहीं दी थी।
राहुल ने अपने
काम की शुरुआत कमजोरियों की पहचान कर और दूरियों को कम कर विधिवत तरीके से
किया। उन्होंने मोदी को उनके ही तरीके से पछाडऩे की शुरुआत की, राहुल ने
सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति बढ़ाई और हल्के-फुल्के और कई बार कठोर ट्वीट
और पोस्ट के जरिए लोगों से जुड़े।
राहुल ने लगातार आम आदमियों के
मुद्दे जैसे भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, किसानों की दुर्दशा, नोटबंदी, कीमत
वृद्धि जैसे मुद्दे पर मोदी पर निशाना साधा और भाजपा नेता को अमीरों के
दोस्त बताने के प्रयास को बढ़ाया।
उन्होंने भाजपा को उनके ही मूल
मुद्दों जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर घेरा। राहुल ने डोकलाम के समीप चीनी
सेने के निर्माण कार्य पर सरकार की चुप्पी और जम्मू एवं कश्मीर में
पाकिस्तान की ओर से लगातर घुसपैठ पर निशाना साधा।
राहुल ने फ्रांस
से राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर लगातार नरेंद्र मोदी पर निशाना साध कर उनकी
इस छवि को तोडऩे की कोशिश की कि वह ‘निजी तौर पर भ्रष्ट’ नहीं हैं।
उन्होंने खुद के दम पर प्रेस वार्ता, ट्वीट, भाषणों और ‘चौकीदार चोर है’ के
नारों से राफेल सौदे को राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया।
लोकसभा चुनाव 2024 : देश की 102 सीटों पर छिटपुट घटनाओं को छोड़ शांतिपूर्ण रहा मतदान
लोकसभा चुनाव 2024: देश की 102 सीटों पर कुल 59.71% मतदान दर्ज
Election 2024 : सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल और सबसे कम बिहार में मतदान
Daily Horoscope