नई दिल्ली। साल 1991 के आम चुनाव में श्रीपेरुं बुदूर में प्रचार अभियान के दौरान राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस 244 सीटों के साथ सत्ता में आई थी।
यह अपनी तरह का एक अनोखा चुनाव था जोकि दो हिस्सों में हुआ था। एक राजीव की हत्या से पहले और एक हत्या के बाद। 20 मई को राजीव की हत्या से पहले 534 संसदीय क्षेत्रों में से 211 में मतदान हो चुका था। बाकी पर चुनाव बाद में, 12 व 15 जून को हुआ। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
इस चुनाव के नतीजे भी अलग तरह के रहे। राजीव की हत्या से पहले की सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा और राजीव की हत्या के बाद कांग्रेस को जबरदस्त जीत मिली।
कांग्रेस अचानक नेतृत्वहीन हो गई और राजीव गांधी की शोकसंतप्त पत्नी सोनिया गांधी केंद्र में आ गईं। उस समय उनके सबसे करीबी सलाहकारों में से एक के. नटवर सिंह ने उनसे पूछा कि संसदीय दल का नेता किसे बनाना चाहिए।
पी.एन.हक्सर की सलाह पर सोनिया ने नटवर सिंह और अरुणा आसफ अली को शंकर दयाल शर्मा के पास भेजा और उन्हें प्रधानमंत्री पद संभालने के लिए राजी करने का दायित्व सौंपा।
उस वक्त उप राष्ट्रपति शर्मा (जो बाद में राष्ट्रपति बने) को नटवर सिंह और अरुणा आसफ अली प्रधानमंत्री पद संभालने के लिए राजी नहीं कर सके। उन्होंने अपनी उम्र और खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया। सीडब्ल्यूसी की अपील के बावजूद सोनिया गांधी ने पार्टी का अध्यक्ष बनने से मना कर दिया।
इसके बाद हक्सर ने दोबारा पूछे जाने पर नरसिम्हा राव का नाम लिया।
नटवर सिंह ने मुलाकात में कहा कि अंतिम संस्कार के बाद मैंने श्रीमती गांधी से इस पर बात की। मैंने उनसे कहा कि आपने सीडब्ल्यूसी की अपील को नहीं मानकर ठीक काम किया लेकिन हमें किसी को तो पार्टी और नई सरकार का नेतृत्व करने के लिए चुनना होगा। वह चुप रहीं। फिर मैंने उनसे कहा कि वह इस मुद्दे पर (इंदिरा गांधी के प्रमुख सलाहकार रह चुके) पी. एन. हक्सर से भी बात करें। उन्होंने इस पर विचार के लिए 24 घंटे मांगे।
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