नई दिल्ली, । सर्वोच्च न्यायालय ने
बुधवार को कहा कि राज्यपाल किसी विशेष परिणाम को प्रभावित करने के लिए अपना
पद उधार नहीं दे सकते। शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि क्या किसी पार्टी के
भीतर विधायकों के बीच मतभेद राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए
पर्याप्त आधार हो सकता है?
बी.एस. कोश्यारी, जो उस समय महाराष्ट्र के राज्यपाल थे, ने तत्कालीन
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट का सामना
करने के लिए कहा था। ठाकरे ने आसन्न हार को भांपते हुए इस्तीफा दे दिया था
और इसके परिणामस्वरूप एकनाथ शिंदे को नए मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त
किया गया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने महाराष्ट्र के
राज्यपाल का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि एक
पार्टी के भीतर विधायकों के बीच मतभेद कैसे राज्यपाल के लिए फ्लोर टेस्ट के
लिए बुलाने के लिए पर्याप्त आधार बन सकता है?
मेहता द्वारा घटनाओं
के क्रम को सुनाए जाने के बाद शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां कीं और कहा कि
राज्यपाल के समक्ष कई सामग्रियां थीं, जिसने उन्हें विश्वास मत का आदेश
देने के लिए प्रेरित किया।
पीठ ने आगे कहा कि राज्यपाल किसी विशेष
परिणाम को प्रभावित करने के लिए अपने कार्यालय को उधार नहीं दे सकते और इस
बात पर जोर दिया कि विश्वास मत के लिए बुलाने से निर्वाचित सरकार को गिरा
दिया जाएगा।
मेहता ने कहा कि सामग्री में शामिल हैं : शिवसेना के 34
विधायकों द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र, उद्धव ठाकरे सरकार से समर्थन वापस
लेने वाले निर्दलीय सांसदों का एक पत्र, और विपक्ष के नेता का एक अन्य
पत्र।
पीठ में शामिल जस्टिस एम.आर. शाह, कृष्ण मुरारी, हेमा कोहली
और पी.एस. नरसिम्हा ने कहा कि विपक्ष के नेता के पत्र का कोई महत्व नहीं है
और साथ ही विधायकों की सुरक्षा को खतरे का हवाला देने वाला पत्र भी इस
मामले में प्रासंगिक नहीं है।
पीठ ने मेहता से सवाल किया कि क्या
पार्टी के कार्यकर्ताओं और विधायकों के बीच व्यापक असंतोष विश्वास मत के
लिए पर्याप्त आधार हो सकता है?
पीठ ने मौखिक रूप से कहा : "लोग
सत्ताधारी दल को धोखा देना शुरू कर देंगे और राज्यपालों के इच्छुक सहयोगी
सत्ताधारी दल को गिरा देंगे। यह लोकतंत्र के लिए एक दुखद तमाशा होगा।"
पीठ
ने कहा कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) एक ठोस गुट
बने हुए हैं और केवल शिवसेना ही थी, जहां असंतोष था और मेहता से सवाल किया,
क्या यह असंतोष मुख्यमंत्री को शक्ति परीक्षण का सामना करने के लिए कहने
के लिए पर्याप्त हो सकता है। यह हमारी चिंता है और यह लोकतंत्र के लिए बहुत
खतरनाक है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मान लीजिए कि विधायकों के
एक समूह को लगता है कि उनका नेता पार्टी के अनुशासन से भटक गया है, तो वे
हमेशा पार्टी के भीतर एक मंच पर नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर सकते हैं,
लेकिन राज्यपाल के पास मतभेद के आधार पर फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने की
गुंजाइश कहां है।
ठाकरे गुट का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता
कपिल सिब्बल ने अपने प्रत्युत्तर में कहा, "हम 'आया राम-गया राम' की
स्थिति में वापस आ गए हैं।"
उन्होंने कहा कि अब आपकी राजनीतिक
संबद्धता मायने नहीं रखती है, जो मायने रखता है वह संख्या है। मामले में
सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी। शीर्ष अदालत शिवसेना में विद्रोह के कारण
उत्पन्न महाराष्ट्र राजनीतिक संकट के संबंध में याचिकाओं पर सुनवाई कर रही
है।
--आईएएनएस
राजस्थान के कोटा में हाई-पावर लाइन के संपर्क में आने से 3 की मौत
बिलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में बावड़ी के धसने के कारण मरने वालों की संख्या 18 हुई, महू से पहुंची सेना की टीम
पायलट के बाद सीपी जोशी ने भी कहा- जयपुर ब्लास्ट के आरोपियों को सजा दिलाने में कमजोर साबित हुई गहलोत सरकार
Daily Horoscope