नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने यहां रामलीला मैदान में दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में लगातार तीसरी बार शपथ ली। शपथ ग्रहण समारोह कई मायनों में अलग रहा। समारोह को भव्य और आम लोगों का दिखाने के लिए कई तरह के इंतजाम किए गए थे। हालांकि समारोह से मोदी विरोधी विपक्षी दल दूर रहे। शपथ ग्रहण समारोह के मंच पर दिल्ली को संवारने में योगदान देने वाले 50 विशेष अतिथि बिठाए गए, जिनमें डॉक्टर, शिक्षक, बाइक एम्बुलेंस राइडर्स, सफाई कर्मचारी, विनिर्माण कर्मचारी, बस मार्शल, ऑटो ड्राइवर आदि शामिल रहे। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
कार्यक्रम में शामिल सभी लोगों का सरकार ने अतिथि की तरह स्वागत किया। मसलन सभी को आमंत्रण पत्र देकर बुलाया गया, ताकि समारोह में शामिल लोगों को अपनेपन का अहसास हो। लेकिन इन सब बातों के बीच केजरीवाल के शपथ ग्रहण समारोह में राष्ट्रीय स्तर पर मोदी का विरोध करने वाले विपक्ष के किसी नेता को नहीं बुलाया गया था। इससे राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हो चुकी है कि क्या केजरीवाल एकला चलो की रणनीति अपना रहे हैं? या फिर मोदी सरकार से मिलकर आगे बढऩा चाहते हैं, ताकि केन्द्र से टकराव की नौबत न आए।
खुद मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपने भाषण में कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को भी बुलाया था, लेकिन उनका पहले से ही कार्यक्रम तय था, इसलिए वे नहीं आ पाए। वर्ष 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए कांग्रेस ने महज 37 सीटें जीतने वाले जद(एस) के एच.डी. कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनवा दिया था। कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह के बहाने कांग्रेस ने विपक्षी एकता दर्शाने की कोशिश की थी।
शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा की विरोधी लगभग सभी छोटी-बड़ी पार्टियों के नेता मंच पर पहुंचे थे। सभी नेताओं ने मंच पर हाथ मिलाकर खड़े होकर विपक्षी एकता का संदेश दिया था। इस तस्वीर में अरविंद केजरीवाल भी देखे गए थे। लेकिन दिल्ली में इतनी बड़ी जीत के बाद उम्मीद की जा रही थी कि केजरीवाल अपने शपथ ग्रहण समारोह के बहाने विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश करेंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। केजरीवाल ने शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष के किसी नेता को नहीं बुलाया।
2014 में भी यही नजारा दिखा था। केजरीवाल भले ही अपने मंच पर भाजपा विरोधी पार्टियों को जगह देने से परहेज करते रहे हैं, लेकिन वे खुद विपक्षी दलों के साथ मंच साझा करते रहे हैं। 2015 में बिहार में लालू प्रसाद की पार्टी राजद और नीतीश की पार्टी मिलकर सत्ता में आई थी। नीतीश के शपथ ग्रहण समारोह में केजरीवाल बतौर मुख्यमंत्री पहुंचे थे। इस दौरान मंच पर भ्रष्टाचार के मामले में फंसे लालू से उनकी मुलाकात काफी सुर्खियां बनी थी। बड़ा सवाल यह है कि अपने शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी दलों के नेताओं को नहीं बुलाकर केजरीवाल क्या संदेश देना चाहते हैं?
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