नई दिल्ली| कोविड-19 महामारी की वजह से
भारत का निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र वित्तीय संकट का सामना कर रहा है। एक
नए सर्वेक्षण में शुक्रवार को कहा गया कि देश की स्वास्थ्य सुविधाओं के
औसत राजस्व में कम से कम 80 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है।
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए 24 मार्च से लागू राष्ट्रव्यापी
बंद का भारतीय अस्पतालों में एक बड़ा प्रभाव देखा गया है, खासकर छोटे और
मध्यम आकार के अस्पतालों के बीच इसका काफी प्रभाव पड़ा है, जो अब अस्तित्व
संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
घरेलू स्वास्थ्य उद्योग पर
कोरोना के प्रभाव का आकलन करने के लिए स्वास्थ्य उद्योग निकाय नथहेल्थ
(एनएटीएचईएएलटीएच) द्वारा सर्वेक्षण किया गया है। इसमें नौ राज्यों और 69
शहरों में 251 स्वास्थ्य सुविधाओं को शामिल किया गया।
इसके
निष्कर्षों से पता चला है कि सर्वेक्षण में शामिल 90 प्रतिशत स्वास्थ्य
सुविधाओं को वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं 21 प्रतिशत
सुविधाओं का तो अस्तित्व ही खतरे में आ गया है।
नथहेल्थ के अध्यक्ष
डॉ. सुदर्शन बल्लाल ने कहा ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र कोविड-19 के खिलाफ
इस लड़ाई में अग्रिम पंक्ति में शामिल है, इसलिए इसे प्रोत्साहन पैकेज
दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "भारतीय स्वास्थ्य उद्योग को पुनर्जीवित
करने के लिए एक प्रोत्साहन पैकेज की आवश्यकता है, जो स्वास्थ्य सेवा
क्षेत्र को आवश्यक राहत प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण होगा।"
सर्वेक्षण
के अनुसार, टियर-1 और टियर-2 शहरों के अस्पतालों में ओपीडी की कमी में 78
प्रतिशत की कमी देखी जा रही है और यहां आने वाले रोगियों की संख्या में भी
79 प्रतिशत की गिरावट आई है।
अध्ययन में पाया गया कि 90 प्रतिशत स्वास्थ्य संगठनों को किसी न किसी रूप में वित्तीय सहायता की आवश्यकता है।
निष्कर्षों
ने संकेत दिया कि राष्ट्रव्यापी बंद के बाद भी अस्पतालों और नर्सिग होम के
लिए स्थिति कठिन ही रहेगी, क्योंकि मरीज अस्पतालों में जाने से
हिचकिचाएंगे।
--आईएएनएस
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