नई दिल्ली। होली हम सभी के लिए खुशियां, मस्ती, रोमांच और उत्साह लेकर आती
है, लेकिन रंगों के इस त्योहार में रंग खेलने का जितना उमंग होता है, उससे
कहीं ज्यादा रंग छुड़ाने का टेंशन रहता है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
दरअसल, ‘बुरा न मानो
होली है’ कहकर रंग फेंकने बाले अल्हड़ युवक-युवतियों की टोलियां अपनी
पिचकारी व गुब्बारों में जो रंग इस्तेमाल करते हैं या रंजक व गुलाल का
प्रयोग करते हैं, उनमें अभ्रक, शीशा जैसे हानिकारक रसायनिक पदार्थ मिले
होते हैं। इनसे त्वचा रुखी और बेजान हो जाती है, बल झडऩे लगते हैं और त्वचा
में जलन शुरू हो जाती है।
जाहिर है कि मौजूदा दौर में बाजार में
बिकने बाले रंगों में हर्बल तथा प्राकृतिक उत्पाद नाममात्र ही होते हैं।
लकिन इससे घबराने की जरूरत नहीं है। आप दिल खोलकर होली खेल सकते हैं और
रंगों के हानिकारक प्रभावों से बच सकते हैं। यही नहीं, रंग छुड़ाने का
टेंशन भी नहीं रहेगा, क्योंकि आन चुटकियों में रंग छुड़ा सकते हैं। इसके
लिए आपको बस थोड़े से उपाय करने होंगे।
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