लहरे ने कहा कि इस मिर्ची के तीखेपन को चखकर ही जाना जा सकता है। यह स्थान
और जलवायु के आधार पर सामान्य मिर्ची से अलग है। सामान्यत: ठंडे जलवायु में
जैसे- छत्तीसगढ़ के सरगुजा, बस्तर, मैनपाट, बलरामपुर और प्रतापपुर आदि
ठंडे क्षेत्रों में इसकी पैदावार होती है। इसके पैदावार के लिए प्राकृतिक
वातावरण शुष्क और ठंडे प्रदेश में उत्पादन होगा। ये भी पढ़ें - खुश रहना है तो रोजाना आठ बार...
कृषि
विश्वविद्यालय केन्द्र अंबिकापुर के प्रोफेसर डॉ. रविन्द्र तिग्गा ने कहा
कि यह मिर्ची दुर्लभ नहीं प्राकृतिक कारणों से विलुप्त हो रही है। इसे कई
क्षेत्रों में धन मिर्ची के नाम से भी जाना जाता है। इस मिर्ची मेें सिंचाई
की जरूरत नहीं पड़ती है, मानसून की वर्षा पर्याप्त रहती है। केवल नमी में
यह पौधा सालों जीवित रहते हैं, और फलते रहता है।
तिग्गा ने कहा कि
यह मिर्ची दुर्लभ नहीं थी, पहले गौरैया-चिरैया बहुतायत में रहती थी और वे
मिर्ची चुनकर खाती और मिर्ची लेकर उड़ जाती थीं। जहां-जहां चिडिय़ा उड़ती
थी, वहां-वहां मिर्ची के बीज फैल जाते थे और मिर्ची के पेड़ उग जाते थे।
अब
गौरैया-चिरैया लुप्त होने की कागार पर है और गांव, कस्बों व शहरों में
तब्दील हो रहे हंै, जिसके कारण यह मिर्ची कम पैदा हो रही है। पहले पहाड़ी
इलाकों में घरों घर धन मिर्ची (जईया मिर्ची) के पौधे होते थे। इसे
व्यावसायिक रूप से भी पैदा किया जा सकता है।
--आईएएनएस
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