जीवन में कामयाबी पाने में शुभ ऊर्जा और सकारात्मक सोच की
खासी जरूरत होती है, जो कि हमें आसपास के माहौल और हमारे निवास से मिलती
है। ऐसे में यदि नव निर्माण वास्तु सम्मत कराया जाए तो घर का हर कोना आपको
सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। अपने घर को वास्तु के अनुसार कुछ यूं बनाया
जा सकता है।
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स्नानघर
स्नानघर, गुसलखाना, नैऋत्य (पश्चिम-दक्षिण) कोण और दक्षिण दिशा के
मध्य या नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य में होना सर्वोत्तम है। इसका
पानी का बहाव उत्तर-पूर्व में रखे। गुसलखाने की उत्तरी या पूर्वी दीवार पर
एग्जास्ट फैन लगाना बेहतर होता है। गीजर आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) कोण में
लगाना चाहिए क्योंकि इसका संबंध अग्नि से है। ईशान व नैऋत्य कोण में इसका
स्थान कभी न बनवाएं।
शौचालय
शौचालय सदैव नैऋत्य कोण व दक्षिण दिशा के मध्य या नैऋत्य कोण व पश्चिम
दिशा के मध्य बनाना चाहिए। शौचालय में शौच करते समय आपका मुख दक्षिण या
पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए। शौचालय की सीट इस प्रकार लगाएं कि उस पर
बैठते समय आपका मुख दक्षिण या पश्चिम की ओर ही हो। प्रयास करें शौचालय एवं
स्नानगृह अलग-अलग बनाएं। वैसे आधुनिक काल में दोनों को एक साथ संयुक्त रूप
में बनाने का फैशन चल गया है। उत्तरी व पूर्वी दीवार के साथ शौचालय न
बनाएं।
मुख्यद्वार
द्वार में प्रवेश करते समय द्वार से निकलती चुंबकीय तरंगें बुद्धि
को प्रभावित करती हैं। इसलिए प्रयास करना चाहिए कि द्वार का मुंह उत्तर या
पूर्व में ही हो। दक्षिण और पश्चिम में द्वार नहीं होना चाहिए।
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