आज है नवरात्र का दूसरा दिन यानी कि मां ब्रह्मचारिणी के
स्वरूप को रिझाने और मनाने का दिन। शास्त्रों की मान्यता है कि भगवती ने
भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए एक हजार वर्षों तक फलों का
सेवन कर तपस्या की थी। इसके पश्चात तीन हजार वर्षों तक पेड़ों की पत्तियां
खाकर तपस्या की। इतनी कठोर तपस्या के बाद इन्हें ब्रह्मचारिणी स्वरूप
प्राप्त हुआ। भक्त इस दिन अपने मन को भगवती मां के श्री चरणों मे एकाग्रचित
करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते
हैं। ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या, तप का आचरण करने वाली भगवती, जिस कारण
उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया है।
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पूजन करें इस खास अंदाज में -
देवी ब्रह्मचारिणी जी की पूजा का विधान इस प्रकार है, सर्वप्रथम आपने
जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमंत्रित किया है उनकी
फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु
से स्नान कराएं व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक
अंश इन्हें भी अर्पण करें।
प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें।
कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता,
ग्राम देवता, की पूजा करें।
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