कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी के
रूप में जाना जाता है। इसे आंवला नवमी तथा कुष्मांड नवमी भी कहा जाता है।
इस दिन व्रत, पूजन, तर्पण और दान करने से मनुष्य के महापाप नष्ट हो जाते
हैं। अक्षय नवमी पर प्रातः काल में सूर्योदय से पहले गंगा, यमुना आदि
पवित्र नदी में स्नान करके आंवले के वृक्ष नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके
आंवले के वृक्ष का पूजन करने का विधान है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
पूजन के लिए
जल, अक्षत, रोली, बतासे, आंवला, गुड़, पुष्प, मिष्ठान आदि का प्रयोग किया
जाता है। पूजन करते समय आंवले के वृक्ष की जड़ में दुग्ध मिश्रित जल चढ़ाकर
शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए और वृक्ष के चारों ओर कपास का सूत लपेटते
हुए एक सौ आठ बार परिक्रमा लगानी चाहिए।
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