संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं। बलियों
में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी माँ
कूष्माण्डा कहलाती हैं। मां कूष्मांडा सूर्यमंडल के भीतर लोक में निवास
करती हैं। वहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके
शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं। सभी तरह के
मनवांछित फलों की प्राप्ति के लिए इस देवी की पूजा को श्रेष्ठ माना गया है।
ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
मां की आराधना करने से भक्तों के सभी रोग दुःख नष्ट हो
जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और धन प्राप्त होता है। माँ कूष्मांडा
को प्रसन्न करने के लिए भक्त को इस श्लोक को कंठस्थ कर नवरात्रि में
चतुर्थ दिन इसका जाप करना चाहिए।
इस दिन जहाँ तक संभव हो बड़े माथे वाली तेजस्वी विवाहित महिला
का पूजन करना चाहिए। उन्हें भोजन में दही, हलवा खिलाना श्रेयस्कर है। इसके
बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए। जिससे माताजी
प्रसन्न होती हैं और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
ऐसे बीतेगा 12 राशि के जातकों के लिए शुक्रवार 29 मार्च का दिन
होली भाई दूज आज, जानिये शुभ मुहूर्त का समय
आज का राशिफल: ऐसे बीतेगा फाल्गुन माह के शुल्क पक्ष की प्रतिपदा व द्वितीया का दिन
Daily Horoscope