दान
के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। जब भी ह्रदय में दान की
भावना जागृत हो, तत्काल उसे पूरा करना चाहिए। परिवार में किसी नए सदस्य का
जन्म होने, जन्म दिवस या विवाह समारोह होने, पूर्णिमा, संक्रांति,
सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, त्रयोदशी संस्कार अथवा श्राद्ध कर्म के समय किया
गया दान अक्षय फल प्रदान करने वाला होता है।
मृत्यु का आभास
होने पर भी किया दान इहलोक के साथ परलोक के लिए भी कल्याणकारी माना गया
है।
दान हमेशा सुपात्र को ही दिया जाना चाहिए। कुपात्र एवं अयोग्य व्यक्ति को
अशुभ फल देने वाला होता है। विद्वान, वेदपाठी, धर्मनिष्ठ, सत्यनिष्ठ और
सांसारिक विरक्त व्यक्ति क पूर्ण श्रद्धा के साथ सां करने से दान का
प्रभाव और फल कई गुना अधिक सार्थक हो जाता है।
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