रक्षाबंधन यानि राखी, इस त्यौहार को लेकर पूरे भारतवर्ष में विशेषकर हिंदूओं में पूरा उल्लास दिखाई देता है। भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक बन चुका यह त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। वर्तमान में बाजार ने हमारे लगभग हर रीति-रिवाज, तीज-त्यौहार को मनाने के मापदंड लगभग बदल दिये हैं। चकाचौंध में इन त्यौहारों के वास्तविक मूल्य भी लुप्त होते जा रहे हैं। रक्षाबंधन से लगभग एक महीने पहले ही बाजारों में रौनक शुरु हो जाती है। दुकानें सजाई जाने लगती हैं। रंग-बिरंगी राखियों के स्टॉल भी लगाये जाने लगते हैं। रेशम के धागों से लेकर बनावटी फूलों की राखियां सजी होती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं वैदिक परंपरा के अनुसार जो राखियां आप बाजार से खरीदते हैं उनका महत्व केवल प्रतीकात्मक रूप से त्यौहार को मनाने जितना ही है। शास्त्रानुसार रक्षाबंधन के दिन बहनों को भाई की कलाई पर वैदिक विधि से बनी राखी जिसे असल में रक्षासूत्र कहा जाता है बांधी जानी चाहिये। इसे बांधने की विधि भी शास्त्रसम्मत होनी चाहिये। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
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