वास्तु के नियमों के अनुसार भवन में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्वों का संतुलन वहां रहने वालों को सुखी और संपन्न बनाये रखने में मदद करता है। सुगन्धित धूप, अगरबत्ती, शुद्ध घी का दीपक, हवन सामग्री, कपूर आदि पदार्थ इन पांचों तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भवन में किसी तरह का कोई वास्तु दोष न रह जाए, इसलिए निर्माण से पूर्व शुभ मुहूर्त में भूमि पूजन और शिलान्यास में मंत्रोपचार के साथ हवन का महत्व है। [ जब व्यवसाय और रोजगार में लगातार हो रही हो हानि, करें ये उपाय]
भवन का निर्माण पूरा होने के बाद शुभ मुहूर्त में गृह प्रवेश के समय भी वास्तु पूजन के साथ हवन किया जाता है। जिससे कि भवन का आंतरिक और बाहरी वातावरण शुद्ध एवं पवित्र बना रह सके और उसमें रहने वालों को सभी तरह के कष्ट, रोग, दुःख और बाधाओं से मुक्ति मिल सके।
अग्निहोत्र से बाधाओं का निवारण किसी आवासीय या व्यावसायिक भवन में वास्तुदोष के कारण आने वाली बाधाओं के निवारण के लिए प्रतिदिन प्रातः और सायं अग्निहोत्र विधि को अपनाया जाता है।
वेदोक्त प्राण ऊर्जा सिद्धान्त पर आधारित अग्निहोत्र में पिरामिड आकार के तांबे के हवन कुंड या पात्र में गाय के गोबर से बने कंडे को प्रज्वलित करके शुद्ध गाय का घी, अक्षत, कपूर, गूगल, हवन सामग्री से मंत्रों के साथ आहुति दी जाती है। इससे उत्पन्न ऊर्जा के प्रभाव से नकारात्मकता और वास्तु दोष दूर होने लगते हैं तथा घर परिवार में खुशहाली आने लगती है।
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