धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने
पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी
मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी
भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को
श्राद्ध किया जाता है। कहते हैं कि इस दौरान यदि धर्म सम्मत इन 15 बातों
का ध्यान रखा जाए तो जीवन में कभी संकट नहीं आता और पितर जातक को पूर्ण
आशीर्वाद देते हैं।
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1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम
में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके
हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध
कर्म में नहीं करना चाहिए।
2- श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का
उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया
है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय
तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी
चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।
3- श्राद्ध में
ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने
चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।
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