जन्म कुंडली में गुरु के 10वीं राशि मकर में स्थित होने पर
वह नीच का होता है। भृगु संहिता के अनुसार नीच गुरु के प्रत्येक भाव में फल
अलग-अलग होते हैं। नीच गुरु अशुभ फल प्रदान नहीं करे, इसके लिए लाल किताब
के अनुसार उस भाव से संबंधित उपाय करें तो लाभ मिलता है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
प्रथम भाव
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लग्न में नीच का गुरु शरीर में दुर्बलता, भाई-बहन के सुख में कमी,
पराक्रम में कमी, धनाभाव तथा बाहरी व्यक्तियो से असंतोष पैदा कराएगा।
विद्या-बुद्धि में त्रुटीपूर्ण सफलता मिलेगी। स्त्री सुख तथा व्यवसाय में
सफलता मिलेगी। यदि आपको प्रथम भाव में स्थित नीच गुरु के कारण उक्त
परेशानियां हों, तो निम्न उपाय करना लाभकारी रहेगा।
लाल किताब का उपाय: गाय, अछूतों की सेवा करें।
द्वितीय भाव-
द्वितीय भाव में नीच गुरु धन हानि करेगा तथा वाणी पर संयम नहीं होने के
कारण कुटुंबजनों से मतभेद कराएगा। शारीरिक सुख व स्वास्थ्य मे कमी करेगा।
माता और भूमि पक्ष कमजोर रहेगा लेकिन शत्रुपक्ष पर प्रभाव रहेगा। पिता,
राज्य और व्यवसाय के पक्ष से सुख, सम्मान, सहयोग तथा लाभ की प्राप्ति संभव
है।
उपाय: संस्थाओं को दान दें। घर के बाहर सड़क पर गड्ढा हो तो भरवाएं। यदि कुंड़ली में शनि दसवें भाव में हो तो सांपों को दूध पिलाएं।
तृतीय भाव-
तृतीय भाव में नीचगत गुरु के प्रभाव से भाई
बहिन से परेशानी तथा पराक्रम में कमजोरी रहेगी। विद्या, धन एवं कुटुंब सुख
में कमी तथा स्त्री से मनमुटाव के संकेत हैं। व्यापार में परेशानी होगी,
परंतु भाग्योन्नति तथा धर्मपालन में रुचि बढ़ेगी। आमदनी बढ़ेगी। ऐसा
व्यक्ति सुखी तथा धनी होता है।
उपाय: मां दुर्गा की पूजा करें। कन्याओं को भोजन कराएं, दक्षिणा दें।
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