कई बार लोगो की असामयिक मृत्यु होने पर या दुर्योग संयोग
होने पर पितृदोष होने पर भी भूत-प्रेतों का भय हो सकता है। ज्योतिष के
अनुसार जिसके यहां खून के रिश्ते में कोई पानी में डूब गया हो या अग्नि
द्वारा जल गया हो या शस्त्र द्वारा मौत हो गई हो या कोई औरत तड़प-तड़प कर मर
गई हो या मारी गई हो, उनको प्रेत-दोष भुगतना पड़ता है और कई बार तो बाहरी
भूत प्रेतों का भी असर हो जाता है। जैसे किसी समाधि या कब्र का अनादर अपमान
किया जाए या किसी पीपल-बरगद जैसे विशेष वृक्ष के नीचे पेशाब आदि करने से
यह दोष शुरू हो जाता है। कई बार किसी शत्रु द्वारा किए कराए का असर भी होता
है। ऐसे में ज्योतिषी और विद्वानों की मदद लेना ही कारगर उपाया बताया गया
है।
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भूत-प्रेत के कारक
भूत-प्रेत कारक ग्रह राहु से अधिक संबंध रखता है। चौथे स्थान में
राहु, दसवें स्थान में शनि-मंगल हो तो उसके निवास स्थान में प्रेत का वास
रहता है। इसके कारण धन हानि, संतान हानि, स्त्री को कष्ट इत्यादि होता है।
अगर दूसरे, चौथे, पंचम, छठे, सातवें, द्वादश रवि के साथ राहु या गुरु के
साथ राहु या तीनों एक जगह हों तो धन के लिए किसी की हत्या करना, विधवा
स्त्री का धन, जायदाद आदि हड़प लेने से घर में पागलपन, दरिद्रता, लोगों के
लापता हो जाने जैसी घटनाएं होती हैं। ऐसी हालत में वहां पिशाच, प्रेत का
निवास होता है। पांच पीढ़ी तक यह दुख देता है।
राहु अगर चंद्र या शुक्र के साथ हो तो किसी स्त्री का श्राप सात पीढ़ी तक
चलता है।
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