अगर आप घर या कार्यस्थल में इन दिशाओं के लिए बताए गए
वास्तु सिद्धांतों का अनुपालन करते हैं, तो इसका सकारात्मक परिणाम आपके
जीवन पर होता है। इन आठ दिशाओं को आधार बनाकर आवास या कार्यस्थल एवं उनमें
निर्मित प्रत्येक कमरे के वास्तु विन्यास का वर्णन वास्तुशास्त्र में आता
है।
पूर्व दिशा :
इस दिशा के प्रतिनिधि देवता सूर्य हैं। सूर्य पूर्व से ही उदित होता है। यह
दिशा शुभारंभ की दिशा है। भवन के मुख्य द्वार को इसी दिशा में बनाने का
सुझाव दिया जाता है। इसके पीछे दो तर्क हैं। पहला- दिशा के देवता सूर्य को
सत्कार देना और दूसरा वैज्ञानिक तर्क यह है कि पूर्व में मुख्य द्वार होने
से सूर्य की रोशनी व हवा की उपलब्धता भवन में पर्याप्त मात्रा में रहती
है। सुबह के सूरज की पैरा बैंगनी किरणें रात्रि के समय उत्पन्न होने वाले
सूक्ष्म जीवाणुओं को खत्म करके घर को ऊर्जावान बनाएं रखती हैं।
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