कहा जाता है कि ग्रह से बडा नक्षत्र होता है और नक्षत्र से
भी बडा नक्षत्र का पाया होता है। हर नक्षत्र अपने अपने स्वभाव के जातक को
इस संसार मे भेजते है और नक्षत्र के पदानुसार ही जातक को कार्य और संसार
संभालने की जिम्मेदारी दी जाती है।
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शुभ, मांगलिक कर्मों के संपादनार्थ गुरुपुष्यामृत योग वरदान
सिद्ध होता है । व्यापारिक कार्यों के लिए तो यह विशेष लाभदायी माना गया
है। इस योग में किया गया जप, ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी होता है परंतु
पुष्य में विवाह व उससे संबंधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं ।।
पंचांग के अंग में नक्षत्र का स्थान द्वितीय स्थान पर है। सर्वाधिक गति से
गमन करने वाले चंद्रमा की स्थिति के स्थान को इंगित करते हैं जो कि मन व धन
के अधिष्ठाता हैं।
हर नक्षत्र में इनकी उपस्थिति विभिन्न प्रकार
के कार्यों की प्रकृति व क्षेत्र को निर्धारण करती है। इनके अनुसार किए गए
कार्यों में सफलता की मात्रा अधिकतम होने के कारण उन्हें मुहूर्त के नाम से
जाना जाता है। पुष्य नक्षत्र में शंख पुष्पी की जड़ को, चांदी की डिब्बी
में भरकर उसे घर के धन स्थान या तिजोरी में रख देने से उस घर में धन की कभी
कोई भी कमी नहीं रहती है।
इसके अलावा बरगद के पत्ते को भी पुष्य नक्षत्र में लाकर उस पर हल्दी से
स्वस्तिक बनाकर उसे चांदी की डिब्बी में घर में रखें तो भी बहुत ही शुभ
रहेगा।
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