नौ ग्रहों में शनि एक मात्र ऐसा ग्रह है, जिसे सबसे क्रूर
माना जाता है। शनि की साढ़े साती या शनि की ढैया का नाम सुनकर अच्छे-भले
जातकों पर भी प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है। यह सही है कि यदि शनि
ग्रह मारकेश या अष्टमेश में हो जाए तो जातक के जीवन में अनिष्ट या अशुभ फल
मिलते देखे गए हैं, लेकिन शनि के शुभ ग्रह से युत या दृष्ट होने से शनि की
साढ़े साती या ढैया जातक पर कम कुप्रभाव देती है। कई बार जातक को लाभ भी
मिलता है।
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कुछ इस तरह मनाएं शनिदेव को
ज्योतिष शास्त्र के
अनुसार शनि ग्रह मकर और कुम्भ राशियों का स्वामी है। पुष्य, अनुराधा और
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र शनि के हैं। तुला राशि में 20 अंश पर शनि उच्च का
और मेष राशि में 20 अंश पर परम नीच का होता है। वायु तत्व प्रधान शनि की
पश्चिम दिशा है, स्वभाव तीक्ष्ण है और गुण तमो है। सूर्य, चंद्र और मंगल
शनि के शत्रु हैं। शनि जिस भाव में होता है, उससे तीसरे, सातवें तथा दसवें
भाव पर अपनी दृष्टि डालता है शनि के कुपित होने से जीवन में धन का अभाव,
कष्ट, मानसिक व शारीरिक रोग (जैसे टांगों में दर्द) जोड़ों में दर्द,
कैंसर, तपेदिक, दांत व दाढ़ में दर्द, पैरालाइसिस, मानसिक चिंता, तनाव,
कलह, दुर्बलता, अकारण विवाद, पदावनति, बनते कार्यों में व्यवधान आदि का
सामना करना पड़ सकता है। शनि के वक्री होने की दशा में भी इसके अशुभ फल ही
मिलते हैं शनि जब शुभ प्रभाव में प्रसन्न होते हैं, तो जातक को न्याय
प्रिय, सुखी, सम्पन्न, अतुलनीय धन-संपदा का स्वामी बना देते हैं।पर्स में ना रखें ये 5 चीजें, वरना हो जाओगे कंगाल
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