श्रीमद्भगवद् गीता के सत्रहवें अध्याय में भोजन के तीन
प्रकारों, सात्विक, राजसिक एवं तामसिक का उल्लेख मिलता है। सात्विक आहार
शरीर के लिए लाभकारी होते हैं और आयु, गुण, बल, आरोग्य तथा सुख की वृद्धि
करते हैं। इस प्रकार के आहार में गौ घृत, गौ दुग्ध, मक्खन, बादाम, काजू,
किशमिश आदि मुख्य हैं। राजसिक भोजन कड़वे, खट्टे, नमकीन, गरम, तीखे व रूखे
होते हैं। इनके सेवन से शरीर में दुःख, शोक, रोग आदि उत्पन्न होने लगते
हैं। इमली, अमचूर, नीबू, छाछ, लाल मिर्च, राई जैसे आहार राजसिक प्रकृति के
माने गए हैं। कहते हैं कि सात्विक भोजन करने से सभी ग्रह अनुकूल होने लगते
हैं और दौलत और शोहरत पाने के योग बनने लगते हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
तामसिक भोजन
किसी भी दृष्टि से शरीर के लिए लाभकारी नहीं होते। बासी, सड़े-गले,
दुर्गंधयुक्त, झूठे, अपवित्र और त्याज्य आहार तामस भोजन के अंतर्गत माने
जाते हैं। मांस, अंडा, मछली, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि आहार तामसिक होते
हैं। इनके सेवन से मनुष्य की बुद्धि पर नकारात्मक असर पड़ता है।
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