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इन तीन ऋणों से मुक्ति लाएगी जीवन में खुशहाली और सम्पन्नता

1. पितृ ऋण : इस जन्म के अलावा यदि पूर्व जन्मों के पितृ ऋण भी आप पर लंबित हैं, तो इसकी पहचान यह है कि यदि कुंडली के 2, 5, 9 व 12वें भाव में कोई भी गृह हो, तो यह पितृ ऋण का द्योतक है। यदि ये पाप गृह हों, तो इसमें पुराने ऋण भी शामिल हैं। इस ऋण की कुछ प्रमुख स्थितियां हैं, यदि नवम भाव में गुरु शुक्र की युति हो या चतुर्थ स्थान में शनि व केतू की युति हो, अष्टम भाव में बुध व नवम भाव में गुरु हो या तीसरे भाव में बुध व नवम में राहू हो, छठे भाव में बुध हो व नवम भाव में केतू हो, तो ये पितृ ऋण की ओर इशारा कर रहे हैं। इस ऋण के कारण सभी कार्यों में विफलता व देरी से परिणाम मिलते हैं, इसके अलावा जातक के बाल असमय सफेद हो जाते हैं, घर में बरकत नहीं होती, हर कार्य में निराशा हाथ लगती है, सम्मान में कमी होती है व बनते काम अटक जाते हैं।

2. मातृ ऋण : कुंडली में माता का स्थान चतुर्थ भाव से जाना जाता है। इस स्थान में यदि केतू व चंद्रमा की युति हो, राहू व शनि हों, तो यह मातृ ऋण की ओर इशारा है। उक्त दोष प्रमुखतः जातक द्वारा माता को तकलीफ पहुंचाने के कारण होता है। कुंडली में उक्त दोष होने पर जातक की स्थाई संपदा अचानक नष्ट होने लग जाती है, घर में पशुओं को नुकसान होता है, किसी जातक की असमय मृत्यु व विषाद के क्षणों में जातक के मन में आत्महत्या जैसे विचार आने लगते हैं।

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Web Title-According to the Puranas the freedom from these debt will come from happiness and prosperity in life
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