पुराणों के अनुसार ऋण दो प्रकार के हैं, एक आध्यात्मिक व दूसरे आर्थिक। आर्थिक ऋण का संबंध तो हमारे इसी जन्म से है, परंतु आध्यात्मिक ऋणों का संबंध हमारे जन्म-जन्मांतरों से है। हमारा यह जीवन पूर्व के कई जन्मों से जुड़ा हुआ है और शृंखलाबद्ध तरीके से हम हमारे इस जीवन व पूर्व जन्मों के कर्म व पुराने ऋणानुबंधनों का परिमार्जन कर रहे हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उपनिषदों में लिखा है कि हम हमारे हृदयस्थल में स्थित ब्रह्म का निरंतर ध्यान करें और अपने पूर्व कर्मों को चुका कर इस जीवन को अनंत ऊंचाइयों पर ले जाएं। इस धरा पर हमारे जन्म के साथ ही तीन ऋणों का भार तो स्वत: ही हमारे जीवन पर आ जाता है। ये हैं मातृ ऋण, पितृ ऋण व देव ऋण, इसीलिए कहा गया है कि मातृ देवो भव, पितृ देवो भव तथा आचार्य देवो भव। ऋणों के बारे में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे स्वयं के अलावा पूर्वजों के ऋणों के भार भी पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलता रहता है, जब तक कि उनका मार्जन न हो जाए।
आप पर तीन मूल ऋणों के अलावा और अन्य कोई ऋण भार है या नहीं, इसका पता कुंडली से आसानी से लगाया जा सकता है और हमें उनके मार्जन का भरपूर प्रयास करना चाहिए, ताकि मोक्ष मार्ग की ओर कदम बढ़ाया जा सके।
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