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ठाकरे समुदाय राजा महापद्मनंद से डर कर बिहार से कर गया था पलायन...

published: 08-09-2012

नई दिल्ली। ठाकरे परिवार के मूल को लेकर जो सत्य कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने सामने रखा उसे लेकर बहस थमती नहीं दिख रही। अब ठाकरे परिवार की जड बिहार में होने को लेकर नया खुलासा हुआ है। कुछ इतिहासकारों ने दावा किया है कि ठाकरे परिवार के पूर्वज पटना से होकर बहने वाली पुनपुन नदी के तटीय इलाके के निवासी थे। ये लोग पुनपुन के आसपास वाले करीब 60 गांवों में रहते थे। इन लोगों की एकता अद्भुुत थी जिससे मगध के तत्कालीन सम्राट महापद्मनंद भी घबरा गए। कायस्थ सभा के इतिहास पर शोध कर रहे अरविंद चरण प्रियदर्शी का कहना है कि किसी बात पर महापद्मनंद ने इन लोगों पर चढाई कर दी। सम्राट के डर से ये लोग भागकर मध्य भारत, नेपाल, असम और कश्मीर चले गए। इन्हीं में से ठाकरे के पूर्वज भोपाल होते हुए चित्तौडगढ से पुणे पहुंच गए। दरअसल दिग्विजय ने बाल ठाकरे के पिता प्रबोधनकार ठाकरे की लिखी किताब का हवाला देते हुए कहा था कि ठाकरे परिवार बिहार के मगध से भोपाल गया और फिर वहां से चितौडगढ होता हुआ पुणे के माधवगढ पहुंचा था। इसके बाद से ही ठाकरे परिवार की जड को लेकर विवाद पैदा हो गया है। हालांकि उद्धव ठाकरे का कहना है कि मेरे दादा ने जो इतिहास लिखा है वह हमारे परिवार का नहीं है। वह ठाकरे परिवार अलग है जो मगध में रहा करता था। कुछ विद्वानों की राय है कि ठाकरे परिवार जिस समाज से है उसकी जडें कश्मीर में रही हैं। इन जानकारों के अनुसार प्रबोधनकार ठाकरे ने भले ही लिखा हो कि "चांद्रसेनीय कायस्थ प्रभु" समाज का ज्ञात इतिहास इसका मूल मगध में बताता है लेकिन बात इससे भी आगे की है। ये लोग कश्मीर से बिहार और अन्य जगहों को गए थे। प्रबोधनकार डॉट कॉम के संपादक सचिन परब के अनुसार दिग्विजय सिंह प्रबोधनकार ठाकरे की जिस किताब के हवाले से बातें कर रहे हैं, वह चांद्रसेनीय कायस्थ प्रभु समाज का इतिहास है न कि ठाकरे परिवार का इतिहास। प्रबोधनकार ठाकरे ने कहीं नहीं लिखा कि उनका परिवार मगध (बिहार) से भोपाल, चित्तौड, मांडगवढ से होता हुआ पुणे पहुंचा। परब ने कहा है कि बीते सैकडों-हजारों वषोंü में पूरे महाराष्ट्र में अधिकांश जातियां बाहर से आई हुई हैं। अत: यहां हर कोई परप्रांतीय है। प्रबोधनकार ने अपनी आत्मकथा में परिवार के बारे में विस्तार से लिखा है। इसके अनुसार उनका जन्म पनवेल में हुआ था। यहीं उनकी चार पीढियां हुईं। इससे पहले यह परिवार रायगढ के पाली में रहता था। इस प्रकार ज्ञात इतिहास में ठाकरे परिवार मूल रूप से महाराष्ट्र के पाली का है जो प्रसिद्ध अष्टविनायक क्षेत्र में पडता है। इस गांव में आज भी ठाकरे के नाम का एक विशाल कुआं है।

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