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नई दिल्ली। विवादास्पद सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक (प्रिवेंशन ऑफ कम्युनल वॉयलेंस बिल) को लेकर एक बार फिर भाजपा आक्रामक हो गई है। संसद के गुरूवार से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र से पहले ही इस बिल को लेकर माहौल गरमा गया है। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने इसके विरोध में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इसे लेकर चिट्ठी लिखी है। मोदी ने बिल को संघीय ढांचे पर प्रहार बताते हुए कहा कि इसमें राज्यों की राय भी ली जानी चाहिए। उन्होंने कहा है कि इस बिल से समाज बंटेगा। इसी के साथ उन्होंने इसकी टाइमिंग पर भी सवाल उठाया है। इसके जवाब में प्रधानमंत्री सिंह ने कहा है कि बिल को लेकर आम सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी। बता दें कि भाजपा शुरू से ही इस बिल का विरोध करती रही है। उसने इसे खतरनाक बताते हुए कहा कि एक तरह कांग्रेस इसके जरिए अल्पसंख्यक वोटों की राजनीति कर रही है, वहीं वह संविधान के संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचाएगा। भाजपा ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि विधेयक से पहले कैसे अंदाजा लगा सकता है कि दंगों के लिए हमेशा बहुसंख्यक समुदाय जिम्मेदार है। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री को लिखी चिटी में संसद में सांप्रदायिक हिंसा विरोधी बिल लाए जाने के समय पर सवाल उठाते हुए कहा है कि वोट बैंक की सियासत के तहत ऎसा किया जा रहा है। उन्होंने बिल के मसौदे को खराब बताते हुए कहा है कि यह संघीय ढांचे के खिलाफ है। इस बाबत कानून राज्यों को ही बनाने दिया जाना चाहिए। दूसरी तरफ शिवसेना ने भी इस बिल का विरोध जताया है। गौरतलब है कि भारत के मुस्लिम संगठनों ने केन्द्र सरकार से सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक पारित कराए जाने की मांग की है। भारत के प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और उसके आसपास के इलाकों में पिछले दिनों भ़डके सांप्रदायिक दंगों की पृष्ठभूमि में केंद्र सरकार से मांग की है कि वह सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक को तत्काल पारित कराए जो ठंडे बस्ते में चला गया है। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की देखरेख में तैयार सांप्रदायिक एवं सुनियोजित हिंसा रोकथाम विधेयक-2011 का भाजपा और कुछ अन्य संगठनों ने विरोध किया था। भाजपा ने इसे बहुसंख्यक विरोधी विधेयक करार दिया था। सरकार सांप्रदायिक हिंसा रोकथान बिल को शीतकालीन सत्र में लाने की पूरी तैयारी कर चुकी है। चुनावी राज्यों में एगि्जट पोल कांग्रेस की जैसा हालत दिखा रहे हैं, उससे भी सरकार पर यह कार्ड खेलने का दबाव बढता दिख रहा है। सरकार 12 दिन का शीतकालीन सत्र बुलाकर बिल पास कराने की तैयारी जरूर कर चुकी है, मगर उसके लिए यह इतना आसान नहीं होगा। भाजपा के अलावा तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और अन्नाद्रमुक की जयललिता भी बिल पर विरोध जता चुकी है। जयललिता बिल को राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण बताते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से शीतकालीन सत्र में इसे न लाने की गुजारिश कर चुकी है। क्या है बिल में: बिल का मकसद केंद्र व राज्य सरकारों और उनके अधिकारियों को सांप्रदायिक हिंसा को निष्पक्षता के साथ रोकने के लिए जिम्मेदार बनाना है। बिल से केंद्र द्वारा राष्ट्रीय सांप्रदायिक सौहाद्रü, न्याय और क्षतिपूर्ति प्राधिकरण का गठन भी प्रस्तावित है। इसमें हिंसा वाले राज्य के मुकदमे दूसरे राज्य में ट्रांसफर करने और गवाहों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने का भी प्रस्ताव है। नौकरशाहों का भी विरोध: गृह मंत्रालय और विधि मंत्रालय के अधिकारियों ने विधेयक के मसौदे में कुछ क्लॉज पर आपत्ति दर्ज कराई है। इनमें सांप्रदायिक हिंसा फैलने पर नौकरशाहों की जिम्मेदारी शामिल है। अधिकारियों का कहना है कि सामान्य डयूटी निभाने में यह बाधा पैदा करेगा। विधेयक का प्रस्ताव व्यापक तौर पर सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक 2011 के प्रावधानों पर केंद्रित है, जिसे सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने तैयार किया था। विधेयक के प्रस्ताव के मुताबिक, धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को निशाना बनाकर की गई हिंसा को रोकने और नियंत्रित करने के लिए निष्पक्ष और भेदभावरहित ढंग से अधिकारों को इस्तेमाल करना केंद्र, राज्य सरकारों और उनके अधिकारियों की डयूटी का अनिवार्य हिस्सा होगा।
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