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मोदी कुछ तो अलग दिखे...

published: 27-05-2014

बहुत ही कडवाहट भरे माहौल में लडे गए लोकसभा चुनाव-2014 के बाद आखिरकार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन चुके हैं। मोदी का शपथ ग्रहण राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में भव्य तरीके से हुआ जिसमें सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों समेत 4 हजार से अधिक मेहमान मौजूद रहे। समारोह बहुत ही कुशलता के साथ प्लान किया गया था जिसमें मोदी के पीएम पद की शपथ लेते ही पीएमओ की वेबसाइट जीवंत हो उठी। कुलमिलाकर मोदी ने आकर कुछ अलग दिखने व करने की शुरूआत कर दी है। मोदी के मंत्रिमंडल की सबसेअच्छी बात इसका अपेक्षाकृत छोटा आकार है। इसके लिए कुछ ऎसे मंत्रालयों को मिलाकर एक किया गया है, जो एक ही विषय से संबंधित हैं। यह कोई नया विचार नहीं है, मगर मोदी ने "मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवनेंüस" के सिद्धांत पर चुनाव प्रचार के दौरान भी जोर दिया था और मंत्रिमंडल के गठन की प्रक्रिया के दौरान उनका एक बयान भी जारी हुआ। मोदी से पहले राजीव गांधी ने भी शिक्षा, युवा मामले और खेल मंत्रालयों को मिलाकर मानव संसाधन मंत्रलय बना दिया था। गठबंधन सरकारों के दौर में मंत्रालयों को तोडकर नए-नए मंत्रालय बनाने का काम बहुत हुआ, क्योंकि प्रधानमंत्री को कई सारी सहयोगी पार्टियों को मंत्रिपदों से संतुष्ट करना पडता था। कहने का अर्थ ये कि मंत्रालय राजनीतिक मजबूरियों के चलते बनाए जाते थे। यही कारण है कि मोदी की कैबिनेट 45 सदस्यों की बन सकी है। कैबिनेट में युवाओं व महिलाओं को पूरी तरजीह मिली है। मोदी सरकार भी तकनीकी रूप से गठबंधन सरकार है, लेकिन भाजपा को इसमें पूर्ण बहुमत मिला है और गठबंधन के सहयोगियों को भी मालूम है कि उन्हें इतनी कामयाबी मोदी लहर के चलते ही मिली है, इसलिए मोदी को मंत्रिमंडल बनाने में इतनी आजादी मिली है जितनी किसी प्रधानमंत्री को नहीं मिली। मनमोहन सिंह की कैबिनेट में तो 78 सदस्य हुआ करते थे। एक ही विषय से संबंधित कई मंत्रालय होने का सबसे बडा नुकसान यह होता है कि जिन फैसलों को एक व्यापक नजरिये से किया जाना चाहिए, उसमें कई मंत्रियों की अलग-अलग राय शामिल हो जाती है। मसलन, ऊर्जा से संबंधित अलग-अलग मंत्रालयों के होने से एक व्यापक ऊर्जा नीति बनने में दिक्कत होती है,&द्दह्ल; क्योंकि अलग-अलग मंत्री और उनके विभाग अपने-अपने अधिकार क्षेत्र को बचाए रखने के लिए संघर्ष करते नजर आते हैं। आखिरकार हर ऎसा मामला सुलझने के लिए प्रधानमंत्री के पास जाता है, यानी जो मामला एक मंत्रालय के स्तर पर हल हो सकता था, वह प्रधानमंत्री के स्तर पर जाता है और वहां प्रधानमंत्री को तमाम मंत्रियों के अहंकार को तुष्ट करने की कोशिश करनी होती है। ज्यादा मंत्रालय होने से लालफीताशाही बढती है और प्रशासन कमजोर होता है। ज्यादातर विकसित देशों में भी बहुत कम मंत्रालय होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में 17-18 मंत्रालयों से ज्यादा नहीं होते। राज्यों में तो और बुरी हालत है। राज्यों में स्कूली शिक्षा के लिए अलग मंत्री हैं, उच्च शिक्षा किसी और के पास है, तकनीकी शिक्षा का कोई अन्य मंत्री है और चिकित्सा शिक्षा, स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत है। विभागों के इतने टुकडे कर दिए जाते हैं कि कई मंत्रियों के पास तबादलों, बहालियों व ठेकों की सिफारिशें करवाने के अलावा कोई काम नहीं रहता। नरेंद्र मोदी ने अच्छी शुरूआत की है, लेकिन अभी और भी गुंजाइश बाकी है। वह मंत्रालयों का और भी ज्यादा तार्किक व संगठित स्वरूप चाहेंगे, लेकिन इसके लिए उन्हें काफी सारे दबाव झेलने होंगे। गठबंधन के कई सहयोगी मोदी की छोटे मंत्रिमंडल की पहल से खुश नहीं हैं और यह बात उन्होंने छिपाई नहीं है। वे मंत्रिमंडल में ज्यादा प्रतिनिधित्व चाहते हैं। भाजपा की पुरानी सहयोगी शिवसेना तो कम प्रतिनिधित्व के अलावा विभाग को लेकर नाराजगी सार्वजनिक कर ही चुकी है। भारी उद्योग मंत्री बनाए गए अनंत गीते ने पदभार नहीं संभाला है। उममीद है कि नरेंद्र मोदी इन सभी समस्याओं पर काबू पाने में सफल रहेंगे। &nbह्यp;

English Summary: modi...man with difference
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