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नई दिल्ली। लालकिले की मुगलिया रंगत बहाल करने की परियोजना के तहत दिल्ली दरवाजे और छत्ता बाजार के अलावा मुगल कला का उत्कृष्ट नमूना माने गए हयात बख्श बाग का भी पुनरूद्धार किया जा रहा है। इसके तहत पुराने फव्वारों को फिर से चलाने की तैयारी है। पुरातत्व विभाग की दिल्ली इकाई के मुख्य अधीक्षक वसंत कुमार स्वर्णकार ने बताया कि किले में यमुना की प्रविष्ट कराई गई नहर के पानी से बाग को न सिर्फ सिंचित किया जाता था बल्कि बहते पानी के दबाव से बाग के फव्वारे भी चलते थे। अब यमुना की धारा किले से काफी दूर जा चुकी है वहीं नहर सूखी पडी है। इतना ही नहीं बाग के बीचोंबीच मौजूद जफर महल के चारों ओर निर्मित जलाशय की जलधाराएं अब वक्त की मार से छिन्न भिन्न हो चुकी हैं। जलाशय की सतह की खुदाई कर जमींदोज हो चुकी जलधाराओं की खोजबीन की जा रही है। इससे पूरे बाग को मौजूदा जलस्त्रोतों की मदद से न सिर्फ फिर से जलमग्न किया जाएगा बल्कि पानी के बहाव के दबाव से पुराने फव्वारों को भी चलाया जाएगा। बाग के पुनरूद्धार कार्य के दौरान फूलों की वे तमाम क्यारियां मूल रूप में मिल गई हैं, जिन्हें पक्के फर्श से अंग्रेजों ने ढंक दिया था। ऎतिहासिक साक्ष्यों की मदद से इन क्यारियों में उन्हीं पौधों को लगाया जाएगा जो मुगलकाल में लगाए जाते थे।
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