CP1
पूरब दिशा की ओर मुख करके सम्मोहन-सिद्धि, देवकृपा-प्राप्ति अथवा अन्य शुभ व सात्विक कार्योे की सिद्धि हेतु टोटके किए जाते हैं। मान-सम्मान, प्रतिष्ठा व श्रीलक्ष्मी-समृद्धि हेतु किए गए टोटकों के लिए पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बैठना शीघ्र फलदायी होता है। अभिचार कर्म अर्थात् किसी का बुरा करने के लिए दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठा जा सकता है। माह, तिथि और वार का महत्व रोग-मुक्ति व स्वास्थ्य-प्राप्ति के लिए मंगलवार का दिन व श्रावण मास सर्वोत्तम हैं। संतान व वैभव पाने के लिए गुरूवार व कार्तिक तथा अगस्त माह में टोटकों का प्रयोग करना चाहिए। शत्रु से मुक्ति पाने के लिए मंगलवार व ज्येष्ठ का महीना सर्वाधिक उपयुक्त है। वशीकरण के लिए टोटकों का प्रयोग शनिवार व सप्तमी तिथि में अधिक सफल रहता है। टोने-टोटकों में प्रयुक्त वनस्पति लाने का ढंग अधिकांश टोटकों को करते समय किसी वनस्पति, पौधे की जड, छाल या पत्ती आदि की आवश्यकता पडती है। उसे जब तक विधि-विधान के साथ प्राप्त न किया जाएगा, कभी उससे लाभ नहीं होगा। जिस दिन वनस्पति की आवश्यकता हो, उससे एक दिन पूर्व संध्या समय, उसके पास पहुंचकर अपने अराध्य देवी-देवता का ध्यान करते हएु, उत्तर या पूरब दिशा की ओर मुंह करके भूमि पर बैठ जाएं और "मम कार्यसिद्धि कुरू-कुरू स्वाहा" मंत्र का जप करके वनस्पति पर लाल सूती धागा बांध दें और रोली या हल्दी का तिलक भी लगा दें, जल अर्पण करें और पूजन करके, प्रार्थना करते हुए कहें कि, "हे वनस्पति देव, मैं कल प्रात: आपको लेने आऊंगा।" फिर दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व ही स्नानादि से निवृत्त होकर उस पौधे या वनस्पति के समीप जाएं और ताजा जल जड में डालकर , इस मंत्र का उच्चारण करें - बेतालश्य पिशाचाश्य राक्षसाश्य सरीसृप:। अपसर्पन्तु में सर्वे वृक्षादस्माच्छिवाज्ञया ।। उसके बाद हाथ जोडकर स्तुति करें - नमस्तेùमृतसम्भूते बलवीर्य विवर्धिनी। बलमायुश्च मे देहि पापान् मां त्राटि दूहे रत:।। फिर जड, टहनी, छाल या पौधे आदि जो भी लेना हो, उसे जिस प्रकार भी संभव हो, प्राप्त करते हुए कहें, "अत्रैव तिष्ठ कल्याणि! मम कार्य करी भव। मम कार्य कृते सिद्धे! तत: स्वर्ग गमिष्यति।।" तथा "ऊँ हीं चंडें हुं फट् स्वाहा।" यदि कोई जड लेनी हो और वह बहुत ज्यादा लम्बी या मोटी हो तथ उसका जड सहित उखाडना अथवा काटा जाना अनिवार्य हो, तो पहले, "ऊँ हीं क्षौं फट् स्वाहा।" अवश्य जप लेना चाहिए, तभी उस जड सहित पौधों को उखाडना चाहिए। मनुष्य और पशुओं के समान ही पेड-पौधों में भी जीवन होता है। पेडों पर अनेक अच्छी-बुरी आत्माएं भी निवास करती हैं। यही कारण है कि कोई भी जडी-बूटी अथवा छाल आदि वृक्ष से अलग करते समय हमें उस वृक्ष और परमपिता परमात्मा का आभार तो मानना ही चाहिए, इन्हें उतनी ही मात्रा में लेना चाहिए जितनी की हमें आवश्यकता है। गंडा लाल व काले रंग के सूती धागे को हथेलियों से बंटकर, शारीरिक व्याधि के अनुसार उस धागे में गिरह (गांठ) लगाकर गंडा तैयार किया जाता है। कभी-कभी किसी विशेष कारण से उसमें जडी-बूटी आदि भी बांध दी जाती है। कुछ गंडों को तावीज आदि लिखकर बांधे जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ गंडे कुरान की आयतों को पढकर या लिखकर तैयार किये जाते हैं तो कुछ वैदिक मंत्रों से प्रभावित करके बनाए जाते हैं। कुछ गंडे टोटको पर आधारित हैं, तो कुछ तावीजात पर ! तावीज इसे रक्षा अथवा कष्ट निवारण के लिए पहना जाता है। दूसरे शब्दों में तावीज को "नक्श" तथा "यंत्र" (जंत्र) भी कहते हैं। इसका अंग्रेजी नाम "एम्यूलेट" है। यन्त्र या नक्ष को बनाकर अथवा लिखकर स्वर्ण, चांदी या तांबे के जिस खोल में बंद किया जाता है, उसे तावीज ही करते हैं। कुछ मांत्रिक और तांत्रिक उसे "मादलिया" भी कहते हैं। तावीज आखिर क्या हैक् वस्तुत: इस बात की जानकारी के बारे में कुछ मोटी बातें समझ लेना अवाश्यक है। सामान्य अथवा सिद्ध किए हुए मन्त्रों से अभिमंत्रित कागज या भोजपत्र पर किसी विशिष्ट प्रकार के निर्धारित अंकों, शब्दों के बने तावीज में बंद करके किसी की बांह में बांध दिया जाता है या गले में लटका दिया जाता है अथवा किसी स्थान पर रख दिया जाता है या चिपका दिया जाता है, जिससे कार्य-सिद्धि होती है। यही कारण है कि खोल को नहीं बल्कि उस कागज को तावीज कहा जाता है। गंडे-तावीजों का निर्माण टोने-टोटके में तो उतारा, भभूत देना, कोई जडी-बूटी सुंघाना अथवा खिलाना और झाडा देना जैसी क्रियाएं ही प्रमुख रूप से आती हैं। इसके विपरीत गंडे और तावीज गले, भुजा, कमर अथवा शरीर के किसी अन्य अंग में धागे की सहायता बांधे अथवा लटकाए जाते हैं। गंडा कहें अथवा तावीज ये सीज्ञी वास्तव मे कागज अथवा भोजपत्र अथवा अन्य किसी सतह पर लिखे गए विशिष्ट यंत्र ही होते हैं। यंत्र मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। अधिकांश यंत्रों में तो विशेष आकृति में कुछ रेखाएं खींचकर उनसे बने खानों में कुछ संख्याएं और अक्षर लिखे जाते हैं। कुछ यंत्र किसी विशेष्ा अथवा कुरान आदि की किसी आयत को लिखकर भी तैयार किए जाते हैं। हिन्दी और संस्कृत में हम जिन आलेखों को यत्र कहते हैं,अरबी-फारसी में उन्हें ही नक्श कहा जाता है। यही कारण है कि मुसलमान यंत्र को नक्श और गंडे को तावीज कहते हैं। वैसे यह केवल नाम का ही अंतर है, यंत्र और नक्श तथा गंडे और तावीज हिन्दू-मुसलमान के इस अंतर को नहीं मानते वे तो पहनने वाले का भला कर ही देते हैं। परन्तु इसके लिए बनाने वाले का ज्ञानी और धारणकर्ता का विश्वासी होना तो आवश्यक है ही, इनके निर्माण में पूरे विधि-विधान का पालन भी अनिवार्य है। गंडे-तावीजों में शक्ति का रहस्य जिस प्रकार ब्रrा की उपासना के दो भाव हैं - साकार और निराकार, उसी प्रकार मन्त्र को निराकार-साधना और यंत्र को साकार-साधना कहा जाता है। यंत्र-साधना में सिद्ध किए हुए मंत्र को किसी (निर्देशित) पत्ते, छाल, कागज, वस्त्र या धातु पत्र पर विशिष्ठ रूप से बनाई गई स्याही से अंकित किया जाता है। बहुधा ऎसे मंत्र त्रिभुज, वर्ग, कोण, चतुर्भज, पुष्पदल अथवा अन्य किसी प्रकार की आकृति बनाकर उसके रिक्त स्थानों में अंकित किए जाते है। यंत्र-निर्माण के पश्चात् उसे फिर से मंत्राभिषक्त करके विधिवत् धूप, दीप और हवन, पूजा की प्रक्रिया द्वारा सशक्त किया जाता है। समस्त विधान पूरा हो जाने पर वह पत्र लपेटकर किसी धातु विशेष से बने कवच (तावीज) में रखकर वांछित स्थान पर रख दिया जाता है अथवा गले या बाजू में धारण करा दिया जाता है। बहुत से यंत्र धातु-तावीज में न रखकर वैसे ही खुले रूप में कहीं रख दिए जाते हैं। देखने में भोजपत्र या कागज का मामूली-सा टुकडा किसी गणितीय प्रश्न का हल जैसा मालूम होता है, पर वस्तुत: वह मंत्र-सिद्धि के कारण अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है। कोई सूखा हुआ तार, जिससे विधुत प्रवाहित हो, देखने में तो साधारण-सा प्रतीत होता है, पर उसका स्पर्श भारी से भारी मशीनों को गतिमान कर देता है, विशालकाय हाथी को मात्र कुछ सैंकंडों में निर्जीव कर देता है। ठीक ऎसी ही, बल्कि इससे भी सैकडों गुना अधिक शक्ति यंत्रों (तावीजों) में होती है।
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