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छत्तीसगढ में पिछले कई सालों से आदिवासी बडी संख्या में उल्टी दिशा में घूमने वाली घडियों का इस्तेमाल कर करते आ रह है। पढने में आपको अजीब जरूर लगेगा, लेकिन छत्तीसगढ के कोरबा, कोरिया सरगुजा, बिलासपुर और जशपुर जिलों में आदिवासी लंबे समय से उल्टी दिशा में चलने वाली घडी का इस्तेमाल कर रहे है। इन घडियों को कांटे दाई से बाई ओर घूमते है। इसका कोई व्यौरा उपलब्ध नहीं है लेकिन माना जाता है कि 1980 के दशक में पृथक गोंडवाना आंदोलन ने जब जोर पकडा, उसी दौरान ये घटियां पहली बार आदिवासियों के बीच बांटी गई। आदिवासियों को कहना है कि हमारी धरती सूर्य के चारों ओर दाई से बाई ओर परिक्रमा करती है। खेती के लिए चलाए जाने वाले हल बैल भी जुताई के लिए दाएं से बांए ही घूमते है। सारी लताएं, खेल-खलिहानों की लिपाई-पुताई, अनाजों को पीसने वाली हाथ चक्की, आदिवासी विवाह और मृत्यु के समय लिए जाने वाले फेरे, यह सब कुछ दाएं से बाएं ही होते है, ऎसे में दाइ्र से बाई दिशा में घूमने वाली घडी गलत कैसे होगी।
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