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संजीवनी बूटी की तरह है डुडूम मछली

published: 15-05-2013

कोडागांव। डुडूम नाम से बस्तर में जानी पहचानी मछली को जानकार लोग ब़डे चाव से खाते हैं। इसकी एक ब़डी वजह इस मछली में अधिक ऊर्जा का होना माना जाता है। शाकाहारी भले ही इसे खराब माने पर डुडूम के शौकीनों के लिए इसे उ़डीसा से लाया और बेचा जाता है। डुडूम मछली संजीवनी बूटी से कम नहीं है। इसके सेवन मात्र से शरीर को अतिरिक्त ताकत मिलती है। भीषण गर्मी में तालाबों या अन्य जल स्त्रोतों में पानी का स्तर कम होने के बाद डुडूम का शिकार आसान हो जाता है।  बस्तर में छोटे-छोटे तालाबों की संख्या हजारों में है। हर गांव में औसतन पांच-छह तालाब होते ही हैं। डुडूम की कई विशेषताएं हैं। यह जानकार बहुतों को आश्चर्य होगा कि यह पानी के बिना भी आराम से दो तीन दिन तक गुजार सकती है। देखने में हूबहू सर्प जैसी यह मछली सर्प से सिर्फ इस मायने में भिन्न है कि इसके सिर के नीचे दो गलफ़डे होते हैं। जब यह रेंग कर सर्प की तरह जमीन पर चलती है तो धोखा हो जाता है कि यह मछली है या सर्प। जीव विज्ञान के जानकार इसे मछली और सर्प के बीच की प्रजाति मानते हैं। इस मछली को बहुत ही पौष्टिक माना जाता है। ग्रामीण इसके सिर को अलग करके उसके खून को पुराने कच्चे चावलों में मिला कर सुखा देते हैं। फिर उसे थो़डी-थो़डी मात्रा में कमजोर बच्चों व çस्त्रयों को सेवन कराया जाता है। इससे उनमें जीवन शक्ति का संचार होता है। माना जाता है कि इस मछली का खून इंसानी खून से मिलता जुलता है। कई लोगों का मानना है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान घायल सिपाहियों को मानव रक्त की आपूर्ति कम होने की स्थिति में इसी मछली के रक्त से उनकी जान बचाई गई थी। बुजुर्ग बताते हैं कि यह पानी के अन्दर नहीं रहती। तालाब या जलस्त्रोत के करीब बिल बनाती है और उसके अंदर रिस गए पानी में ही रह लेती है।  रात को तालाब के किनारे विचरण करती है। इसकी यही आदत इसके लिए खतरनाक साबित होती है, क्योंकि जानकार लोग यह समझ जाते हैं कि किसी तालाब या जलस्त्रोत में उसका निवास है या नहीं। बहुत से लोग इसकी खूबियों के बारे में जानते तो हैं पर उसके सेवन से इसलिए कतराते हंै कि कहीं यह जहरीली न हो। वास्तव में यह जहरीली नहीं होती है सिर्फ सांप की तरह दिखती है। इसके वृहद बाजार व पौष्टिकता के गुण के चलते अब इसकी संकर नस्लें भी तैयार की गई हैं। जिसका उत्पादन तो भरपूर है पर इसका सेवन करने वाले बताते हैं कि फार्मी डुडूम न तो स्वादिष्ट है और न ही पॉवरफुल है। हालांकि कीमत में राहत मिल जाती है। फार्मी डूडूम देसी की तुलना में काफी सस्ती होती है पर देशी डुडूम की बात ही कुछ और है। जिन किसानों के खेत या तालाबों में यह मिल जाती है, उन किसानों को आसानी से अतिरिक्त आय का जरिया साबित होता है।

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