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वियना। कीमियागिरी यानी एल्केमी सदियों से अपनाई जाती रही है। लेकिन अब अधुनातन दौर में मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने धातुओं के बीच रहने वाले जीवाणु "कुप्रिविडस मेटलिडुरान्स" की खोज की है जो उच्च सांद्रता वाले गोल्ड क्लोराइड या तरल सोने के बीच जीवित रह सकता है। गोल्ड क्लोराइड प्रकृति में पाया जाने वाले बहुत ही विषैला यौगिक है। अनुसंधानकर्ताओं ने यह ऎसा जीवाणु खोजा है जो उच्च विषाक्तता के बीच भी जीवित रह सकता है और 24 कैरेट सोने के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। "द ग्रेट वर्क ऑफ द मेटल लवर" में अनुसंधानकर्ताओं ने तरल सोने को 24 कैरेट ठोस सोना में बदलने के लिए बायोटेक्नोलॉजी, कला और एल्केमी का उपयोग किया है। इनके काम की प्रदर्शनी ऑस्ट्रिया के प्रिक्स आर्स इलेक्ट्रॉनिका की आर्ट प्रतियोगिता में लगी है। अनुसंधानकर्ताओं ने प्रकृति की संभव नकल करते हुए इन जीवाणुओं को भोजन के रूप में गोल्ड क्लोराइड दिया और करीब एक सप्ताह के बाद जीवाणु ने उस विषाक्त यौगिक को सोने में बदल दिया। माइक्रोबायोलॉजी और मॉलेक्यूलर जेनेटिक्स के सहायक प्रोफेसर काजम कश्फी ने कहा, "हम माइक्रोबियल अल्केमी की प्रक्रिया अपना रहे हैं। हम ऎसे पदार्थ से सोने का उत्पादन कर रहे हैं जो ठोस अवस्था में मूल्यहीन है ओर अब हम उसे बहुमूल्य धातु में बदल रहे हैं।"
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