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‘वास्तव’ ने बदली मां की भूमिका, सिर्फ एक साल बडी थी संजय से

वास्तव का क्लाइमैक्स सशक्त था। दृश्य में सिर्फ मां और बेटे का वार्तालाप था, जहां बेटा अपनी मां से कहता है कि ‘मां मुझे इस ‘डर’ से मुक्त कर दे। मुझे मुक्त कर दे मां। मैं मर जाऊंगा।’ महेश मांजरेकर ने जिस अंदाज में इस दृश्य को फिल्माया ऐसा बिरला ही कोई निर्देशक फिल्माता है। पुत्र मोह में फंसी मां अपने बेटे के दर्द को समझते हुए उसे दुलारती है, गले लगाती है और अन्त में अपने पुत्र की पिस्तौल से ही उसे गोली मार देती है। गोली मारते ही परदा काला नजर आता है और थोडे अंतराल के बाद झूले के चलने की आवाज आती है। कैमरा रीमा लागू, मोहनीश बहल और शिवाजी साटम पर ठहर जाता है। महेश मांजरेकर ने ‘वास्तव’ के इस दृश्य को मेहबूब खान की कालजयी फिल्म ‘मदर इंडिया’ की तर्ज पर फिल्माया था, जहां नरगिस अपने बेटे सुनील दत्त को गोली मार देती है। महेश ने वक्त के अनुसार माहौल बदला था। नायक के मौत का अंदाज बदला था, नहीं बदली तो सिर्फ मां की मजबूरी जो अपने पुत्र को गोली मारती है। जिस वक्त रीमा लागू ने संजय दत्त की मां का यह किरदार निभाया था तब वे संजय दत्त ने मात्र एक साल बडी थी।

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Web Title-‘Vastav’ change the role of a mother, just one year bigger than Sanjay dutt
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