बीजापुर। जब भी आप बाजार से सामान खरीदते हैं, तो उसकी कीमत अदा करते हैं। यह कीमत आप नकद देते हैं या फिर क्रेडिट कार्ड से भुगतान करते हैं, लेकिन अपने देश में एक जगह ऐसी भी है, जहां जेब में रुपए होने पर भी कोई दुकानदार सामान नहीं देता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के एक गांव की। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
जिला मुख्यालय से महज 50 किमी दूर बासगुड़ा में शुक्रवार को लगने वाले बाजार में रुपए नहीं चलते। यहां आज भी सामान के बदले सामान ही मिलता है। इसके कारण यहां के आदिवासी ही घाटे में रहते हैं, क्योंकि 20 रुपए किलो बिकने वाले महुआ के बदले आदिवासी 10 रुपए में बिक रहा आलू लेने को मज़बूर हैं। जिले में वनोपज के लिए दो बड़े बाजार गंगालूर और बासगुड़ा में लगते हैं। नक्सल प्रभावित बासगुड़ा गांव और यहां का बाजार अक्सर चर्चा में रहता है।
आपको बता दें कि आजादी के पहले से इन गांवों में सामान से सामान बदलने का चलन था, जो आज भी जारी है। तिखुर, शहद, चिरौंजी और बहुमूल्य जड़ी-बूटियों के लिए जाने जाना वाला यह गांव सन 2005 में वीरान हो गया था। यहां के बाजारों और बस्तियों में नक्सलियों का खौफ नजर आता है। 13 साल बाद यह वीरान गांव धीरे-धीरे बसने लगा और बाजार भी लगने लगे। पूर्व में पुलिस और नक्सलियों के बीच संघर्ष में ग्रामीण आदिवासी मारे गए और आज वनोपज में ग्रामीण आदिवासियों का भरपूर शोषण हो रहा है।
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